SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 355
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विवाह संस्कार विधि का त्रैकालिक स्वरूप ...297 विवाह संस्कार विधि का तुलनात्मक विवेचन भारतीय परम्परा में 'विवाह' को अति आवश्यक संस्कार के रूप में स्वीकारा गया है। पारिवारिक विकास और सामाजिक उन्नति की दृष्टि से विवाह संस्कार एक अनिवार्य कृत्य है। यह संस्कार आज भी अक्षुण्ण है। जब हम 'विवाह संस्कार' का तुलनात्मक विवेचन करते हैं तो हमारे सामने जैन एवं वैदिक परम्परा की विवाह विधि का मौलिक रूप स्पष्ट हो जाता है जो इस प्रकार है नाम की दृष्टि से- जैन एवं हिन्दू दोनों धाराओं में इस संस्कार के नाम को लेकर सर्वथा समानता है। क्रम की दृष्टि से- श्वेताम्बर आदि तीनों परम्पराओं में क्रम की अपेक्षा भिन्नता है। श्वेताम्बर परम्परा में इसे चौदहवाँ, दिगम्बर में सोलहवाँ और वैदिक मत में पन्द्रहवाँ संस्कार माना गया है। अधिकारी की दृष्टि से- तीनों परम्पराएँ अपने-अपने साहित्य में निर्दिष्ट योग्य गुण वाले ब्राह्मण को इस संस्कार के कर्ता के रूप में स्वीकार करती हैं। शुभ दिन की दृष्टि से- तीनों परम्पराओं में विवाह संस्कार के लिए शुभ लग्न आदि को स्वीकार किया गया है। श्वेताम्बर साहित्य में इस विषय का विस्तृत वर्णन प्राप्त होता है। काल की दृष्टि से- यह संस्कार कब किया जाना चाहिए? श्वेताम्बर मत से कन्या का विवाह गर्भ से आठ वर्ष से लेकर ग्यारह वर्ष तक कर देना चाहिए। उसके बाद कन्या रजस्वला हो जाती है। रजस्वला को 'राका' कहा गया है। पुरूष का विवाह आठ वर्ष से लेकर अस्सी वर्ष के बीच कभी भी किया जा सकता है। . दिगम्बर मत में कन्या के लिए बारह वर्ष की आयु और पुरूष के लिए सोलह वर्ष की आयु विवाह के योग्य मानी गई है। वैदिक मत में पुरूष के लिए निश्चित आयु का कोई विधान नहीं किया गया है तथा कन्या के लिए सामान्यतया यौवनावस्था को उचित माना है, क्योंकि काम क्रीड़ा हेतु यही अवस्था योग्य होती है। जैनागमों में 'जोवणगमणुप्पत्ता'-ऐसा कहा है अर्थात वर-कन्या यौवन को प्राप्त हो जाएं, तब उनका विवाह करना चाहिए। प्रवचन सारोद्धार में लिखा है-'सोलह वर्ष की कन्या और पच्चीस वर्ष का पुरूष उनके
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy