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________________ 296...जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन वर के सात वचन जैन परम्परा के अनुसार अग्निदेव की तीन प्रदक्षिणा (फेरे) पूर्ण करने के बाद वर-वधू सात-सात प्रतिज्ञाएँ स्वीकार करते हैं। वर द्वारा सात प्रतिज्ञाएँ लेते समय कन्या से यह स्वीकृति ग्रहण की जाती है यदि तुम इन वचनों का पालन करने के लिए संकल्पबद्ध हो, तो ही मैं तमको अंगीकार करूंगा। वे वचन निम्न हैं1. मेरे कुटुम्बीजनों का यथायोग्य विनय और सेवा करना। 2. मेरी आज्ञा का उल्लंघन मत करना। 3. मेरे माता-पिता आदि को और मुझको कर्कश व निर्दय वचन मत बोलना। 4. मेरे मित्र आदि स्नेहीवर्ग तथा साधु वगैरह सत्पात्र के घर आने पर उनको भोजन कराने एवं आहार आदि देने में अपने मन को जरा भी कलुषित मत करना। 5. रात्रि में दूसरों के घर नहीं जाना। 6. जहाँ संकीर्ण स्थान में बहुत से लोग रहते हों, वहाँ कदापि गमन मत करना। 7. निन्दित आचरण वाले और पापियों के घर मत जाना। कन्या के सात वचन कन्या भी सात वचनों के लिए वर को प्रतिज्ञाबद्ध करती है। कन्या के सात वचन ये हैं1. अन्य स्त्रियों के साथ क्रीड़ा मत करना। 2. वेश्या के घर कभी मत जाना। 3. जुआ आदि लोक निंदनीय कार्य मत करना। 4. द्रव्य का योग्य रीति से उपार्जन कर अन्न, वस्त्र और आभूषण आदि से मेरी रक्षा करना। 5. मुझे धर्मस्थान में जाने के लिए निषेध मत करना। 6. मुझसे कभी भी कोई बात मत छिपाना। 7. मेरी गुप्त बात को किसी के समक्ष प्रकट मत करना। इस प्रकार वर-कन्या के परस्पर सात-सात वचन अंगीकार कर लेने पर अग्नि के चारों और चौथा फेरा लगाया जाता है।65
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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