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________________ 290...जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन हवन-आहुति के गूढ़ रहस्य- हवन, होम, आहुति-ये प्राय: समानार्थक शब्द हैं। हवन-अग्नि में सामग्री की आहुति देना, आवाहन करना। होम यज्ञाग्नि में घी की आहुति देना। आहुति-एक प्रकार का पुण्य कृत्य, हवनकुंड में हवनसामग्री डालना आहुति कहलाता है। आहुति का आध्यात्मिक अर्थ है-कुसंस्कारों का होम करना, असत्य आचरण की तिलांजलि देना आदि। पं. श्रीराम शर्मा आचार्य ने चार प्रकार की आहुतियों का उल्लेख किया है- 1. प्रायश्चित्त होम 2. राष्ट्रभृत होम 3. जया होम और 4. लाजा होम।61 जैन परम्परा में विवाह संस्कार के समय लाजा होम की आहुतियाँ दी जाती है। 1. प्रायश्चित्त-होम की आहुतियाँ देते समय दोनों के मन में यह भावना आनी चाहिए कि दाम्पत्य जीवन में बाधा पहुँचाने वाले जो भी कुसंस्कार अब तक मन में रहे हों, उन सब को स्वाहा किया जा रहा है। किसी से पति व्रत या पत्नी व्रत का उल्लंघन करने की कोई भूल हुई हो तो उसे अब एक स्वप्न जैसी बात समझकर विस्मृत किया जाए। इस प्रकार कोई अन्य नशेबाजी जैसा दुर्व्यसन रहा हो या स्वभाव में रूक्षता, कठोरता, स्वार्थपरता जैसी वृत्ति विद्यमान हो तो उसका त्याग किया जा रहा है। साथ ही भविष्य में इस प्रकार की भूल न करने का संकल्प भी किया जा रहा है। 2. राष्ट्रभृत होम से तात्पर्य है - परिवार, समाज एवं राष्ट्र के प्रति जो उत्तरदायित्व गृहस्थ के ऊपर है, उनका उत्साह, श्रद्धा एवं उदारता के साथ निर्वाह किया जाए। इस संकल्प को हृदयंगम करने के लिए राष्ट्र-भृत होम की आहुतियाँ दी जाती हैं। 3. जया होम का अर्थ है - अपने-अपने असंयम, लोभ, क्रोध एवं अहंकार जैसे दोषों को जीतना। इन दुष्प्रवृत्तियों के उच्छृखल बने रहने से विवाह का आदर्श एवं उद्देश्य ही नष्ट हो जाता है। पति-पत्नी आत्मजयी होकर ही एक-दूसरे के लिए उपयोगी बन सकते हैं अत: आत्मजयी बनने के लिए अग्निदेव को आहुतियाँ दी जाती हैं। 4. लाजा होम- लज्जा, यश, प्रतिष्ठा, सम्मान की अभिवृद्धि के लिए किया जाता है। इस आहुति द्वारा संकल्प किया जाता है कि एक-दूसरे को यशस्वी एवं विकसित बनाएंगे, लोक-लज्जा का ध्यान रखेंगे। लाजा का एक अर्थ धन-धान्य एवं वैभव भी है। इन आहुतियों में यह भी संकेत है कि दोनों
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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