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________________ विवाह संस्कार विधि का त्रैकालिक स्वरूप... 289 लिया है, अब उसे पीछे नहीं हटना है। इसका एक प्रयोजन यह भी कहा जा सकता है कि कन्या का पिता अपनी कन्या को वर के हाथ में सौंपता है 159 ग्रन्थि बन्धन के मौलिक उद्देश्य - कन्या की ओढ़नी के एक किनारे को वर के दुपट्टे से बांधना ग्रन्थि बन्धन है। यहाँ दुपट्टे एवं ओढ़नी के छोर को बांधने का उद्देश्य दोनों के शरीर और मन का एक संयुक्त इकाई के रूप में बांधते हुए एक नई सत्ता का आविर्भाव करना है। यह कृत्य एक-दूसरे में पूर्ण रूपेण समाहित होने का संदेश देता है । ग्रन्थि बन्धन में पैसा, पुष्प, दूर्वा, हरिद्रा और अक्षत -ये पाँच वस्तुएं भी बांधते हैं। पैसा इसलिए रखा जाता है या पैसा रखने का अर्थ यह है कि धन पर किसी एक का अधिकार न रहे, उस पर दोनों का संयुक्त अधिकार रहे। खर्च करने के लिए दोनों ही समानाधिकारी रहेंगे । दूर्वा का अर्थ है - यह कभी निर्जीव न होने वाली प्रेम भावना की सूचक। जिस प्रकार दूर्वा में जीवन तत्त्व नष्ट नहीं होता है, पानी में डालने पर सुखी दुर्वा भी हरी हो जाती है, उसी प्रकार दोनों के मन में एक-दूसरे के लिए अजस्र प्रेम और आत्मीयता बनी रहे, चन्द्र - चकोर की तरह दोनों एक-दूसरे पर अपने को न्यौछावर करते रहें, अपना कष्ट कम और साथी का कष्ट बढ़कर मानें, अपने सुख की अपेक्षा साथी के सुख का अधिक ध्यान रखें, अपना आन्तरिक-प्रेम एक- दूसरे पर उड़ेलते रहें । हरिद्रा - हरिद्रा आरोग्य की सूचक है। यह विधान एक-दूसरे के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य की निरोगता में सहयोगी बनने का प्रेरक है। यह भावनमें दोनों तक ही सीमित न रहे, अपितु परिवार एवं जन-जन के लिए भी विकसित करें। अक्षत इस बात का संकेत करता है कि आप दोनों एक-दूसरे के लिए ही नहीं बंधे हैं, वरन् समाज सेवा का व्रत एवं उत्तरदायित्व भी इस ग्रन्थि बंधन में महत्त्वपूर्ण लक्ष्य के रूप में विद्यमान है। पुष्प - पुष्प हँसते-खिलते रहने का संदेश देता है। एक-दूसरे को हँसाएंखिलाएं, एक-दूसरे को देखकर प्रसन्न हों। एक-दूसरे को सुगन्धित बनाने के लिए, यश फैलाने के लिए, सदैव तत्पर रहें। इस प्रकार ग्रन्थि बंधन में दूर्वा, पुष्प, हरिद्रा, अक्षत और पैसा - ये पाँच वस्तुएँ रखते हुए यह आशा की जाती है कि वे जिन लक्ष्यों के साथ आपस में बंधे हैं, उन्हें आजीवन निरन्तर स्मरण में रखें 160
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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