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________________ विवाह संस्कार विधि का त्रैकालिक स्वरूप... 291 मिल-जुलकर पारिवारिक समृद्धि एवं व्यवस्था को सुव्यवस्थित बनाने के लिए पूरा-पूरा प्रयत्न करेंगे। इस तरह चारों प्रकार के होम विवाह के अवसर पर उन्हीं महत्त्वपूर्ण प्रयोजनों को लेकर किए जाते हैं। इस सम्बन्ध में यह जानना भी अपेक्षित है कि प्रथम तीन होम वर-वधू द्वारा बैठे-बैठे ही किए जाते हैं, जिनमें वर के हाथों घी और कन्या के हाथों साकल्य(शाकल) की आहुतियाँ दी जाती हैं, जबकि लाजा - होम की सात भाँवर फिरते हुए, वधू द्वारा खड़े होकर दी जाती है। इस समय कन्या का भाई थाली में शमीपत्र तथा घृत मिश्रित भुने हुए धान की खील लेकर वर-वधू के पीछे खड़ा हो जाता है। वर-वधू परिक्रमा करते हुए नियत स्थान पर आते हैं, तब भाई एक मुट्ठी खील बहन के हाथ में देता है । यह क्रम परिक्रमाओं के साथ चलता रहता है। प्रत्येक बार तीन-तीन आहुतियाँ दी जाती हैं। यह क्रम तीन बार तक चलता है अर्थात 3 x 3 = 9 आहुतियाँ तीन बार में और एक आहुति चौथी परिक्रमा के समय दी जाती हैं, इस प्रकार कुल 10 आहुतियाँ लाजा- होम की होती हैं। यहाँ लाजा-होम में प्रयुक्त अन्न और शमीपत्र उर्वरता व ऐश्वर्य के प्रतीक हैं। लाजा - होम का एक अर्थ यह है - इस होम में भाई के घर से अन्न आदि लाजाओं के रूप में बहन को मिलता है। वह सूचित करती हैं- बेशक मेरे व्यक्तिगत उपयोग के लिए पिता गृह से मुझे कुछ मिला है, पर उसे मैं छिपाकर अलग नहीं रखती, आपको सौपती हूँ अतः आपके मन में भी मेरे लिए अलगाव या छिपाव का भाव न आए। फेरे (परिक्रमा) का मूल हार्द - यह सर्वसामान्य परम्परा रही है कि विवाह की मूल विधि अग्नि देवता के समक्ष एवं उसके चारों ओर परिक्रमा लगाकर निष्पन्न की जाती है। शास्त्राचार से चार प्रदक्षिणा एवं लोकाचार से सात प्रदक्षिणा (फेरे) लगाने का विधान है। इन्हें भाँवर फिरना कहते हैं। परिक्रमा लगाते हुए वर-वधू द्वारा यह संकल्प किया जाना चाहिए कि अग्नि देवता की साक्षी में यह शपथ ग्रहण कर रहे हैं कि हम लोग एक महान् धर्म बन्धन में बंधने हेतु कटिबद्ध बने हैं और यह प्रण करते हैं कि देव सान्निध्य में किए जा रहे इस संकल्प को प्राण-प्रण से निभाने का प्रयत्न करेंगे। इस प्रकार यह विधि गृहस्थ धर्म से बंधने की प्रेरणा प्रदान करती है।
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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