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________________ विवाह संस्कार विधि का त्रैकालिक स्वरूप ...283 कुण्ड) के चारों और छ: फेरे दिलवाएं।56 इस समय गृहस्थाचार्य प्रत्येक फेरे के बाद निम्न मन्त्रोच्चार पूर्वक अर्घ चढ़ाएं। फेरे के मन्त्रॐ ह्रीं सज्जाति परमस्थानाय अर्घ्यम्। ॐ हीं सद्गृहस्थ परमस्थानाय अर्घ्यम्। ऊँ ह्रीं पारिव्राज्य परमस्थानाय अर्घ्यम्। ऊँ ह्री सुरेन्द्र परमस्थानाय अर्घ्यम्। ॐ हीं साम्राज्य परमस्थानाय अर्घ्यम्। ॐ हीं आर्हन्त्य परमस्थानाय अर्घ्यम्। प्रदक्षिणा (फेरों) के समय स्त्रियाँ मंगलगीत गाएं। छ: फेरों के बाद दोनों अपने स्थान पर बैठ जाएं। तब गृहस्थाचार्य वर-कन्या दोनों से एक-दूसरे के प्रति सात-सात प्रतिज्ञा वचन बुलवाए। इन प्रतिज्ञाओं को सप्तपदी कहते हैं। फिर वर को आगे करके सातवाँ फेरा लगवाए। ___तदनन्तर गृहस्थाचार्य मन्त्र पूर्वक नवदम्पति पर पुष्प क्षेपण करे। फिर दोनों ओर से यथाशक्ति दान की घोषणा करवाए, फिर हथलेवा छुडवाए। फिर खड़े होकर मंगल कलश करे अर्थात 'पुण्याहवाचन' के पाठ पूर्वक एक पात्र में जलधारा छुड़वाईं जाए। इस समय शांतिधारा का पाठ भी बोले। आशीर्वाद एवं आरती- तत्पश्चात गृहस्थाचार्य श्लोक पूर्वक नवदम्पति को आशीर्वाद प्रदान करे। फिर कन्या की माता वर का तिलक कर उसकी आरती करे। उसके पश्चात् मंगल गीत पूर्वक वर-वधू को विदा करें। ____ आदिपुराण में दिगम्बरीय विवाह पद्धति का संक्षिप्त स्वरूप इस प्रकार मिलता है 57- विवाह के दिन द्विज (विधिकारक गुरु) सिद्ध परमात्मा की सम्यक् प्रकार से पूजा करे। फिर तीनों अग्नियों की पूजा करे। फिर उनकी साक्षी पूर्वक वैवाहिक क्रियाएँ सम्पन्न करे। यह विवाहोत्सव महान वैभव के साथ सिद्ध परमात्मा की प्रतिमा के समक्ष करना चाहिए। वर-वधू को सात दिन तक ब्रह्मचर्यव्रत धारण करने का संकल्प लेना चाहिए। विवाहोत्सव के उपरान्त अपने योग्य किसी देश या तीर्थ भूमि में भ्रमण कर महान आडम्बर के साथ अपने घर में प्रवेश करें। यहाँ दिगम्बर मान्य विवाह विधि प्रचलित परम्परा के अनुसार कही गई है।
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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