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282... जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन
अर्थ और काम का सेवन करेंगे।" इस अवसर पर उपस्थित सभी स्त्री, पुरूष वर-कन्या के प्रति 'वृणीत्वं वृणीध्वं ( वरो)' कहकर पुष्प उछालें। उसके बाद कन्या के पिता झारी या कलशी में जल लेकर वर के दाएं हाथ की कनिष्ठिका अंगुली से कन्या के बाएं हाथ की कनिष्ठिका अंगुली का स्पर्श करवाएं और मन्त्रपूर्वक उन पर जलधारा छोड़ें। कन्या भेंट करने का मन्त्र निम्न है -
“ॐ नमोऽर्हते श्रीमते वर्धमानाय श्री वलायुरारोग्य संतानाभिवर्धनं भवतु क्ष्वीं क्ष्वीं हं सः स्वाहा । "
तत्पश्चात् पूर्व निर्दिष्ट हवन कुण्ड पर ही चौकोण तीर्थंकर कुण्ड, गोल गणधर कुण्ड और त्रिकोण सामान्यकेवली कुण्ड की स्थापना करें। फिर श्लोक के उच्चारणपूर्वक उन पर कन्या से तीन अर्घ चढ़वाएं। फिर आहुति प्रदान करें। एक आहुति काम्य मन्त्र पढ़कर दें। वर-कन्या पर पुष्पक्षेप करें। इसी क्रम में जातिमन्त्र, निस्तारकमंत्र, ऋषिमंत्र, सुरेन्द्रमन्त्र, परमराजादिमन्त्र, परमेष्ठिमन्त्र, आहुतिमंत्र बोलकर एक-एक आहुति दें। फिर शांतिमन्त्र के उच्चारण पूर्वक 108 या 27 बार आहुति दें। उसके बाद सप्तपदी पूजा कराएं।
ग्रन्थि बंधन - हवन-विधि के बाद कन्या की साड़ी के पल्ले में चवन्नी, सुपारी, हल्दीगाँठ, सरसों व पुष्प बांधें। फिर उससे वर के दुपट्टे के पल्ले को बांध दें। यह ग्रन्थि बन्धन की क्रिया सौभाग्यवती स्त्री द्वारा करवाई जाए। ग्रन्थि बंधन का मन्त्र निम्न है -
“अस्मिन् जन्मन्येष बन्धोर्द्वयोर्वै, कामे धर्मे वा गृहस्थत्वभाजि। योगो जातः पंचदेवाग्नि साक्षी, पंचदेवाग्नि साक्षी, जाएंपत्त्योरंचलग्रंथि बंधात् । ”
पाणिग्रहण - ग्रन्थि बंधन होने का बाद कन्या का पिता कन्या के बाए हाथ में और वर के दाहिने हाथ में जल मिश्रित हल्दी का लेप करे । लोक में जो पीले हाथ करने की बात कही जाती है, यह वही विधि है । फिर वर के दाएं हाथ में थोड़ी-सी गीली मेंहदी और एक चवन्नी रखकर उस पर कन्या का बायां हाथ रखें। कन्या का हाथ ऊपर और वर का हाथ नीचे हो, इस प्रकार करके वरकन्या का हथलेवा बांध दें। पाणिग्रहण हथलेवा का मन्त्र यह हैमहारिद्रपंकमवलिप्य सुवासिनीभिर्दतं द्वयोर्जनकयोः खलु तौ गृहीत्वा । वामं करं निजसुताभवमग्रपाणिम्, लिम्पेद्वरस्य च करद्वययोजनार्थ ॥
पाणिग्रहण के बाद कन्या को आगे और वर को पीछे करके चँवरी (हवन