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विवाह संस्कार विधि का त्रैकालिक स्वरूप ...281 वर्तमान में यह तैयार भी मिलती है। उस वेदी के बीच एक हाथ लम्बा-चौड़ा स्थंडिल(हवन कुण्ड) बनाते हैं। यहाँ हवन कुण्ड से तात्पर्य गार्हपत्य, दक्षिणाग्नि और आहवनीय-ऐसी तीन अग्नियों की स्थापना करना है। विवाह की समस्त क्रियाएँ इन अग्नियों के समक्ष की जाती है। जो वेदी तीन कटनी की बनाई जाती है उनमें प्रथम, द्वितीय, तृतीय कटनीगत अग्नि की स्थापना इन तीन अग्नियों से की जाती है, अतएव फेरे का समय होने के पूर्व स्थंडिल(हवन कुण्ड) पर कुंकुम से स्वस्तिक बनाएं, चारों ओर दीपक रखें। फिर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके टंगी हुई कटनी में ऊपर यंत्र, बीच में शास्त्र और नीचे में गुरु-पूजा के निमित्त कागज पर चौसठ ऋद्धि की रचना कर रखें। अष्टमंगल की सजावट करें।54
उसके बाद शुभ मुहूर्त में वर-कन्या वेदी के स्थान पर आएं। उस समय वधूपक्ष के दरवाजे पर कन्या की माता चावल का छोटा-सा चौक पूरकर पट्ट रखें और उस पर जल द्वारा वर के पाँव धोए तथा उसकी आरती करे। कन्या का मामा वर का तिलक कर एक रूपया व श्रीफल प्रदान करे। फिर दोनों वेदीस्थान के समक्ष आकर खड़े हो जाएं। उस समय दोनों को एक-एक पुष्पाहार दिया जाए। गृहस्थाचार्य मंगलाष्टक पढ़े और शुभ मुहूर्त के होने पर वर कन्या को और कन्या वर को पुष्पमाला पहनाए। फिर दोनों बिछाई हुई दरी पर बैठे। कन्या वर के दाईं ओर बैठे। गृहस्थाचार्य वर से मंगल कलश की स्थापना करवाए, उस कलश को सुपारी, हल्दी गाँठ, चवन्नी आदि मांगलिक वस्तुएँ डालकर लालवस्त्र से आच्छादित करे।
उसके बाद जिनेन्द्रदेव की पूजा करें, नवदेवता का पूजन करें, विनायक यन्त्र की पूजा करें, फिर सिद्ध प्रतिमा की पूजा करें। यन्त्रादि की पूजा विधि समाप्त होने पर कन्या के पिता व कन्या के मामा यन्त्र के सामने तथा वर के पिता और वर के मामा यन्त्र के पीछे हाथ जोड़कर खड़े हो जाएं। उसके बाद गृहस्थाचार्य कन्या की सम्मति पूर्वक कन्या के पिता व मामा से वर के प्रति यह वाक्य बुलवाए-“मैं आपकी धर्माचरण, समाज एवं देश की सेवा में सहयोग देने के लिए अपनी यह कन्या प्रदान करना चाहता हूँ। आप इसे स्वीकार करें और धर्म का पालन करें।" इसी प्रकार वर के पिता व मामा यन्त्र को नमस्कार कर कहें-“हम आपकी कन्या को स्वीकार करते हैं और इसके सहयोग से वर धर्म,