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284...जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन यह विधि अथ से इति तक धार्मिक अनुष्ठानों से सम्बन्ध रखती है। इस विधि को पढ़ने से ज्ञात होता है कि यह एक धर्मानुमोदित परम्परा है। इस परम्परा ने प्रत्येक संस्कार को धार्मिकता से जोड़ा है। यद्यपि श्वेताम्बर मान्य विवाह विधि भी धार्मिक भावों से अनुप्राणित हैं, तथापि सिद्धप्रतिमापूजन, मंगल कलश स्थापन, जिनेन्द्र भक्ति आदि का इसमें विशेष उल्लेख है। इसमें तोरण स्पर्श करना, लवण उतारना, पौंखना करना, वर की नाक खींचना, अग्नियुक्त सकोरा तोड़ना आदि क्रियाकलापों का सूचन नहीं भी है। संभवत: ये प्रचलित विधान इस परम्परा में भी अवश्य ही सम्पन्न किए जाते होंगे, परन्तु उल्लेख न करने का हेतु विचारणीय है।
वैदिक- हिन्दू परम्परा में विवाह संस्कार की विधि का अत्यन्त विस्तृत स्वरूप प्राप्त होता है। इसी के साथ विवाह सम्बन्धी कृत्यों को लेकर इस परम्परा में कई मत-मतान्तर भी देखे जाते हैं। यहाँ विवाह संस्कार के महत्त्वपूर्ण एवं प्रचलित कृत्यों का दिग्दर्शन मात्र किया जा रहा है
वधू-वर गुण परीक्षा- वैवाहिक सम्बन्ध तय करने के लिए वधू-वर के योग्य गुणों की परीक्षा की जाती है।
वरप्रेषण- प्राचीन काल में कन्या के पास व्यक्ति भेजे जाते थे। मध्यकाल के क्षत्रियों में भी यह प्रथा थी। आधुनिक काल में ब्राह्मणों तथा बहुत सी अन्य जातियों में लड़की का पिता वर ढूंढ़ता है, यद्यपि शूद्रों में यह प्राचीन परम्परा अब भी मौजूद है।
वाग्दान- विवाह तय करना अथवा वर को कन्यादान की मौखिक स्वीकृति देना।
मण्डपकरण- विवाह के लिए पण्डाल बनाना। वधुगृहगमन- वर का बारात के रूप में वधू के घर जाना।
मधुपर्क- वधू के घर वर का प्रथम बार आगमन होने पर श्वसुर द्वारा स्वागत के रूप में दिया जाने वाला खाद्य पदार्थ। इस सम्बन्ध में अनेक मत प्रचलित हैं।
स्नापन-परिधापन एवं सन्नहन- विवाह के दिन वधू को स्नान कराना, नया वस्त्र पहनाना, उसकी कटि में धागा या कुश की रस्सी बांधना।