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विवाह संस्कार विधि का त्रैकालिक स्वरूप ... 275
से ही बैठी हुई कन्या की बाईं तरफ और मातृदेवी के सामने वर को बिठाएं। 49 हथलेवा विधि - उसके बाद लग्नवेला के उपस्थित होने पर गृहस्थ गुरु पीसी हुई शमी एवं पीपल की छाल को चन्दन द्रव्य के साथ मिलाकर वर-वधू के हाथ में उसका लेप करे। • फिर वर का हाथ सीधा नीचे तथा उसके ऊपर वधू का हाथ उलटा रखते हुए दोनों के दाहिने हाथ को मिलाएं। ऊपर में कौसुंभसूत्र बांध दें। • उस समय हस्त बन्धन का निम्न मन्त्र पढ़ें 150
"ॐ अर्हं आत्मासि, जीवोऽसि, समकालोऽसि, समचित्तोऽसि, समकर्माऽसि समाश्रयोऽसि, समदेहोऽसि, समक्रियोऽसि, समस्नेहोऽसि, समचेष्टितोऽसि समभिलाषेऽसि, समेच्छोऽसि, समप्रमोदोऽसि, समविषादोऽसि, समावस्थोऽसि, समनिमित्तोऽसि, समवचाअसि, समक्षुत्तृष्णोऽसि, समगमोऽसि, समविहारोऽसि, समविषयोऽसि, समशब्दोऽसि, समरूपोऽसि, समरसोऽसि, समगन्धोऽसि समस्पर्शोऽस, समेन्द्रियोऽसि, समाश्रवोऽसि, समबन्धोऽसि, समसंवरोऽसि, समनिर्जरोऽसि, सममोक्षोऽसि । तदेह्येकत्वमिदानीं अर्हं ॐ।।”
वैदिक परम्परा में देश या कुल परम्परा के अनुसार हस्त बंधन की क्रिया करते समय वर को मधु -पर्क (दही और घृत के साथ मिलाया हुआ शहद) खिलाना, गाय का जोड़ा देना और कन्या को आभूषण पहनाना आदि कार्य किए जाते हैं।
वेदिका (चंवरी) रचना विधि- तदनन्तर वर और कन्या मातृगृह में बैठे रहें और कन्यापक्ष वाले वेदी ( चंवरी) की रचना करें । उसकी विधि यह है - कुछ लोग मण्डप के बीच में काष्ठ स्तंभों से व काष्ठ के आच्छादन से युक्त चौकोनी वेदी बनाते हैं और चारों कोनों में एक के ऊपर एक रखे गए छोटे-छोटे सोना, चाँदी, ताम्र या मिट्टी के सात-सात कलशों को चारों तरफ चार-चार हरे बाँस से बांधकर वेदी ( चँवरी) बनाते हैं। चारों और वस्त्र या काष्ठमय तोरण बांधते हैं, मध्य में त्रिकोण अग्निकुंड बनाते हैं। • फिर गृहस्थ गुरु वासचूर्ण, पुष्प और चावल को हाथ में ग्रहण कर निम्न मन्त्र पढ़ते हुए वेदी की प्रतिष्ठा करे और हस्तगृहीत पुष्प आदि को उस पर उछालें। वेदी प्रतिष्ठा का मन्त्र यह है
“ॐ नमः क्षेत्रदेवतायै शिवायै, क्षाँ क्षी क्षू क्षौं क्षः । इह विवाह मण्डपे आगच्छ आगच्छ। इह बलिपरिभोग्यं गृह- गृह । भोगं देहि, सुखं देहि, यशो