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________________ 274...जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन रौदः, आदिम: सौम्यः, आदिम: काम्यः, आदिमः शरण्यः, आदिमो दाता आदिमो वन्द्यः, आदिम: स्तुत्य, आदिमो ज्ञेयः, आदिमो ध्येयः, आदिमो भोक्ता, आदिम: सोढ़ा, आदिम: एकः, आदिमोऽनेकः, आदिमःस्थूलः, आदिमः कर्मवान, आदिमोऽकर्मा, आदिमो धर्मवित्, आदिमोऽनुष्ठेय:, आदिमोऽनुष्ठाता, आदिम: सहजः, आदिमो दशावान्, आदिमः सकलत्रः, आदिमोविकलत्रः, आदिमो विवोढ़ा, आदिमः ख्यापक:, आदिमो ज्ञापंक, आदिमो विदुरः, आदिमः कुशलः, आदिमो वैज्ञानिकः, आदिम: सेव्य: आदिमो गम्यः, आदिमोविमृष्यः, आदिमो विमृष्टा, सुरासुरनरोरगप्रणत:, प्राप्तविमलकेवलो, यो गीयते यत्यवतंसः, सकलप्राणिगणिहितो, दयालुरपरापेक्षः, परात्मा, परं ज्योतिः, परं ब्रह्म, परमैश्वर्यमाक्, परंपर: रापरोऽपरंपरः, जगदुत्तमः, सर्वगः, सर्ववित्, सर्वजित्, सर्वीयः, सर्वप्रशस्य:, सर्ववन्द्यः, सर्वपूज्य:, सर्वात्मा, असंसारः, अव्ययः, अवार्यवीर्यः, श्री संश्रय, श्रेयः संश्रयः, विश्वावश्यायहृत, संशयहृत, विश्वसारो, निरंजनो, निर्ममो, निष्कलंको, निष्पापात्मा, निष्पुण्यः, निर्मनाः, निर्वचाः, निर्देहोः, नि:सशयो, निराधारो, निरवधि, प्रमाणं, प्रमेयं, प्रमाता, जीवाजीवाश्रवबन्धसंवरनिर्जरा मोक्षप्रकाशक: स एव भगवान् शान्तिं करोतु, तुष्टिं करोतु, पुष्टिं करोत, ऋद्धिं करोतु, वृद्धि करोतु, सुखं करोतु, श्रियं करोतु, लक्ष्मीं करोतु, अर्ह ॐा" • फिर इसी विधि से और महोत्सव पूर्वक चैत्यपरिपाटी, गुरुवन्दन, मंडलीपूजा, नगर देवता आदि का पूजन करें। . फिर कन्या के नगर में प्रवेश करें। वर की बहन विशेष प्रकार से लवणोत्तरण आदि करें। इस प्रकार गृहस्थ गुरु के साथ वह बारात कन्या के गृह द्वार तक पहुँचे। • वहाँ वर की सास आदि कपूर एवं दीपक से वर की आरती उतारें। फिर कुटुम्बी स्त्री जलते हुए अंगारों एवं नमक से युक्त शरावसंपुट, जिसमें तड़-तड़ इस प्रकार की आवाज आ रही हो, को वर के ऊपर से उतारकर प्रवेश मार्ग में बाईं ओर स्थापित कर दे। • उसके पश्चात दूसरी स्त्री कुसुंभ वस्त्र से अलंकृत मन्थनदंड(मथानी) सामने लाए और उससे वर के ललाट को तीन बार स्पर्शित करें। • फिर वर वाहन से उतरकर उस अग्नि और नमक वाले शरावसंपुट को अपने बाएं पैर से तोड़े। • उसके बाद सास या कन्या की भाभी या मामा वर के कंठ में उस कौसुंभ वस्त्र को डालकर खींचते हुए मातृगृह में ले जाए। वहाँ पहले
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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