________________
272... जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन
पुरूष, वर-कुल के ज्येष्ठ पुरूष को अपने देश और कुलाचार के अनुसार नारियल, सुपारी, जिनोपवीत, चावल, दूर्वा और हल्दी देकर कन्यादान करे अर्थात सगाई का सम्बन्ध पक्का करे। उस समय गृहस्थ गुरु निम्न मन्त्र पढ़े
“ॐ अर्हं परमसौभाग्याय, परमसुखाय परमभोगाय, परमधर्माय, परमयशसे, परमसन्तानाय, भोगोपभोगान्तरायव्यवच्छेदाय, इमाम् अमुकनाम्नी कन्याम्, अमुकगौत्राम्, अमुकनाम्ने वराय, अमुकगोत्राय ददाति, प्रतिगृहाण अर्हं ॐ”
द्वारा
• उसके बाद कन्यापक्ष के लोग सबको तांबूल दें। • फिर वरपक्ष उस कन्या के लिए वस्त्र, आभूषण, श्रृंगार सामग्री आदि उसके पिता के घर पहुँचाई जाए। • कन्या का पिता भी परिवार सहित वर को निमन्त्रित करे और महोत्सव के साथ भोजन कराए तथा वर को वस्त्र, अंगूठी आदि दें। 44
·
दिगम्बर परम्परा में कन्यादान को 'वाग्दान' के नाम से सम्बोधित किया है। तदनुसार वरपक्ष और कन्यापक्ष अपने वंशादि एवं गोत्रादि का परिचय देकर पंचों के समक्ष सगाई का सम्बन्ध निश्चित करते हैं। उनकी कुछ जातियों पोरवाल आदि में इस अवसर पर विनायक यन्त्र की पूजा भी की जाती है। 45 वैदिक परम्परा कुछ निश्चित व्यक्तियों को कन्यादान करने का अधिकारी मानती है। उनमें कन्या के पिता को प्रमुख माना है। इनके वहाँ पिता कुछ मन्त्रों का उच्चारण कर कन्या प्रदान करता है, इसमें कन्यादान की यही विधि वर्णित है।46
•
विवाह की प्रारम्भिक विधि - विवाह संस्कार करने हेतु लग्नदिन से पहले मास या पक्ष में दोनों पक्ष के परिवारजनों को इकट्ठा करके ज्योतिषी को उत्तम आसन पर बिठाकर उसके हाथ से शुभ भूमि पर विवाह लग्न लिखवाएँ। • फिर जन्म लग्न की भाँति विवाह लग्न की स्वर्ण मुद्रा, फल, पुष्प और दूर्वा से पूजा करें। • फिर दोनों पक्ष के बुजुर्ग ज्योतिषी को वस्त्र, अलंकार एवं पान दें। यह विवाह को प्रारम्भ करने की क्रिया है। • उसके बाद मिट्टी के नए सकोरे में जौ बोएँ। • फिर कन्या के गृह में मातृ स्थापना और षष्ठीमाता की स्थापना करें। यह विधि पूर्व में कही जा चुकी है । 47 दिगम्बर एवं हिन्दू48 परम्परा में गणपति की स्थापना करते हैं।
उसके बाद श्वेताम्बर
परम्परानुसार
वरपक्षीय सात कुलकरों की स्थापना
•