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________________ 270...जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन सप्तम नवांश का स्वामी सप्तम नवांश को देखता हो या नवांश से युक्त हो, उसे अस्तशुद्धि कहते हैं।37 इस प्रकार जैन विवाह के सम्बन्ध में पूर्वोक्त नक्षत्र एवं लग्नादि को शुभ व अशुभ जानना चाहिए और शुभ नक्षत्रादि का योग होने पर विवाह संस्कार करना चाहिए। दिगम्बर परम्परा के अनुसार इस संस्कार के लिए नक्षत्रों में-मूल, अनुराधा, रेवती, उत्तरात्रय, हस्त, स्वाति, मघा और रोहिणी, मासों मेंमार्गशीर्ष, माघ, फाल्गुन, वैशाख, ज्येष्ठ और आषाढ़ शुभ माने गए हैं। वर के लिए सूर्यबल और कन्या के लिए गुरुबल तथा दोनों के लिए चन्द्रबल होना जरूरी है। ग्रहों में-वर की राशि से सूर्य 3, 6, 10, 11 वीं राशि में शुभ और 4, 8, 12 वीं राशि में अशुभ होता है। कन्या की राशि से गुरु 9, 5, 11, 2, 7 वीं राशि में शुभ और 4, 8, 12 वीं राशि में अशुभ होता है। चन्द्रमा वर और कन्या की राशि से 3, 6, 7, 10, 11 वाँ शुभ और 4, 8, 12 वाँ अशुभ होता है।38 विवाह संस्कार हेतु योग्य आयु विचार विवाह किस उम्र में किया जाना चाहिए? श्वेताम्बर मान्यतानुसार कन्या का विवाह आठ वर्ष से लेकर ग्यारह वर्ष तक कर देना चाहिए तथा पुरूष का विवाह आठ वर्ष से लेकर अस्सी वर्ष की अवधि के बीच कभी भी किया जा सकता है, तदुपरान्त पुरूष प्राय: वीर्य रहित होता है।39 दिगम्बर परम्परा मान्य यशस्तिलकचम्पू के अनुसार कन्या बारह वर्ष की और किशोर सोलह वर्ष का होने पर विवाह के योग्य होता है।40 __वैदिक परम्परा में पुरूष के विवाह के लिए कोई निश्चित अवधि नहीं रखी गई है। पुरूष यदि चाहे, तो आजीवन अविवाहित रह सकता है, कन्या के विवाह के लिए अवधि का निर्धारण किया गया है। गृह्यसूत्रों एवं धर्मसूत्रों के अनुसार सामान्यत: कन्या युवावस्था के सन्निकट पहुँच जाए या युवाकाल प्रारम्भ हो जाए तब ही विवाह के योग्य मानी गई है।41 वैदिक के कुछ ग्रन्थों में कन्या के लिए बाल विवाह किए जाने का उल्लेख भी मिलता है। विवाह संस्कार में प्रयुक्त सामग्री श्वेताम्बर परम्परा में विवाह के लिए अग्रलिखित सामग्री अनिवार्य मानी गई है
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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