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विवाह संस्कार विधि का त्रैकालिक स्वरूप ...269 विवाह संस्कार के लिए शुभ दिन का विचार __विवाह-संस्कार के लिए शुभ नक्षत्र आदि के सम्बन्ध में अध्ययन किया जाए, तो श्वेताम्बरमूलक आचारदिनकर में विशद विवरण सम्प्राप्त होता है। आचारदिनकर के मतानुसार मूल, अनुराधा, रोहिणी, मघा, मृगशिरा, हस्त, रेवती, तीन उत्तरा और स्वाति-इन नक्षत्रों में विवाह करना चाहिए। वेध, एकार्गल, लता और पाप उपग्रह सहित नक्षत्रों में विवाह नहीं करना चाहिए तथा यति, क्रान्ति और साम्यदोष में भी लग्न नहीं करना चाहिए। इसी प्रकार तीन दिन को स्पर्श करने वाली तिथि, क्षय तिथि, क्रूर तिथि, दग्धा तिथि, रिक्ता तिथि, अमावस्या, अष्टमी, षष्ठी और द्वादशी-इन तिथियों में विवाह नहीं करना चाहिए। भद्रा में, गंडान्त में, दुष्ट नक्षत्र, तिथि, वार और योग में, व्यतिपात में, वैधृति में और निन्द्य समय में विवाह नहीं करना चाहिए। सूर्य के स्थान पर बृहस्पति हो या बृहस्पति के स्थान पर सूर्य हो तो दीक्षा, विवाह, प्रतिष्ठा आदि शुभ कार्य नहीं करना चाहिए।
चातुर्मास में, अधिक मास में, गुरु अस्त या शक्र अस्त में, मल मास में और जन्म मास में दीक्षा-विवाह आदि कार्य नहीं करना चाहिए। मासांत में, संक्रान्ति में, संक्रान्ति के दूसरे दिन में, ग्रहण आदि दिन में और ग्रहण के बाद सात दिन तक भी विवाह आदि कृत्य नहीं करना चाहिए। इसके सिवाय जन्म तिथि, जन्म वार, जन्म नक्षत्र, जन्म लग्न, जन्म राशि और जन्म का स्वामी अस्त होने पर या क्रूर ग्रहों से हत होने पर विवाह आदि नहीं करना चाहिए, परन्तु स्थिर लग्न में, द्विस्वभाव वाले लग्न में, सद्गुण संयुक्त चर लग्न में, उदयास्त के विशुद्ध होने पर विवाह करना शुभ माना गया है। इसके साथ ही लग्न और सप्तम घर ग्रह से वर्जित हो, तीसरे, छठवें और ग्यारहवें घर में रवि, मंगल और शनि हो, छठवें और तीसरे घर में तथा पाप ग्रह वर्जित पाँचवे घर में राहु हो, लग्न में तथा पाँचवें, चौथे, दसवें और नौवें घर में बृहस्पति हो, ऐसे ही शुक्र, बुध हो, लग्न के छठवें, आठवें और बारहवें घर से अन्यत्र पूर्ण चन्द्रमा हो, तब विवाह करना चाहिए। क्रूर ग्रहों से द्रष्ट और क्रर ग्रहों से संयुक्त चन्द्रमा का वर्जन करना चाहिए। इसमें विवाह लग्न की उदय शुद्धि और अस्तशुद्धि अवश्य देखना चाहिए। लग्न का स्वामी और लग्न के नवांश का स्वामी नवांश को देखता हो या नवांश से युक्त हो, उसे उदय शुद्धि कहते हैं।