________________
264... जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन
आज पारिवारिक विघटन एवं दाम्पत्य जीवन के संघर्ष का मुख्य कारण समान कुल जाति एवं समदृष्टि का न होना भी है। आज के सम्बन्ध केवल रूप एवं वैभव पर आधारित होते हैं, न कि शील, स्वभावादि गुण और समान धर्म पर। इसी कारण भारतीय परम्परा के परिवारों में भी तलाक होने लगे हैं, जो संस्कृति के बिल्कुल विरूद्ध हैं। विवाह की वर्तमान स्थिति का चित्रण करते हुए किसी नीतिकार ने कहा है- कन्या वर के सौन्दर्य को देखती है, कन्या की माँ वैभव को और पिता वर की योग्यता को देखता है, बान्धवजन अपने हितों की इच्छा करते हैं, जबकि सामान्य लोग (बाराती आदि) प्रीतिभोज के मिष्ठान्न पर ध्यान रखते हैं।22 वास्तविकता यह है कि कन्या संस्कार युक्त हो और धर्म, अर्थ, काम, पुरूषार्थ की पूरक हो। ऐसी सुशिक्षित कन्या ही कर्त्तव्यपरायणी भार्या और प्रेम-वत्सला माता का रूप धारण कर सकती है।
विवाह की योग्यता को जानने के मापदंड
जैन संस्कृति के अनुसार विकृत कुल की कन्या के साथ विवाह नहीं करना चाहिए । विकृत कुल किसे कहें ? इसका स्पष्टीकरण करते हुए कहा गया है - जिस वंश का पुरूष रोग वाला हो, बवासीर का रोगी हो, परिमाण से छोटे कद वाला हो, दाद का दर्दी हो, चित्रकोढ़ से ग्रसित हो, नेत्र व उदर की व्याधि से आक्रान्त हो तथा वभ्रु जाति का हो, वह वंश विकृत कुलीन कहलाता है, ऐसे वंश की कन्या के साथ विवाह नहीं करना चाहिए ।' विकृत कन्या का लक्षण बताते हुए कहा है- जो अधिक अंग वाली हो, हीन अंग वाली हो, भूरा-भूखरा वर्ण वाली हो, ऊँची दृष्टि वाली हो तथा जिसका चेहरा और नाम भयानक हो, वह विकृत कन्या कहलाती है । वह कन्या विवाह हेतु त्याज्य कही गई है। साथ ही 'जो कन्या देव, ऋषि, ग्रह, तारा, अग्नि, नदी और वृक्षादि नाम वाली हो, जिसके शरीर पर बहुत रोम हों, पीली- माँजरी आँख हो तथा घर्घर स्वर वाली हो, वह कन्या भी विवाह के लिए अयोग्य कही गई है। 23
इसी प्रकार विकृत कुलीन वर के साथ कुलीन कन्या को भी नहीं देना चाहिए। जो कुलहीन हो, जिसमें क्रूर स्वभाव वाली नारियाँ हों, आपदा युक्त या व्यसनी घर हो, बहुत कम संतानें हों, वह वर का विकृत कुल माना गया है। ऐसा कुल कन्यादान के लिए वर्जित करना चाहिए। साथ ही विकृत वर का भी त्याग कर देना चाहिए। विकृत वर का लक्षण बताते हुए कहा है- 'जो मूर्ख,