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________________ विवाह संस्कार विधि का त्रैकालिक स्वरूप ...263 विवाह किसके साथ हो ? भारतीय संस्कृति संस्कार प्रधान है। वह सत्संस्कारों का बीजारोपण करने के लिए समान कुल, जाति एवं वर्ण के पारस्परिक सम्बन्ध पर विशेष बल देती है। वह यह मानती है कि दोनों पक्ष समान कुल वाले हों, तो वर वधू की जीवन यात्रा सुखद व सामंजस्यता से युक्त होती है। जैन परम्परा के मुख्य ग्रन्थों में ये निर्देश प्राप्त होते हैं कि विवाह सम्बन्ध संस्कार युक्त एवं धर्म युक्त परिवार में ही करना चाहिए, क्योंकि असमान कुल एवं विपरीत आचार वाले युगल के बीच स्थाई प्रेम रह नहीं सकता तथा प्रेम रहित विवाह जीवन पर्यन्त परिताप देने वाला होता है।17 शान्तिनाथ चरित्र में कहा गया है-संसार में जो समान वैभव और समान कुल वाले हों, उनके बीच ही मैत्री, विवाह और विवाद करना ठीक है।18 सागारधर्मामृत में वर्णन आता है- यदि धर्मयुक्त संतान, क्लेशरहित प्रेम, संयमयुक्त परिवार और देव-शास्त्र-गुरु एवं अतिथि के सम्मान तथा पूजा की इच्छा हो, तो सदाचारी युवक को संस्कारयुक्त कन्या के साथ विवाह करना चाहिए।19 आचारदिनकर में निर्देश है-'जिनका समान शील-स्वभाव हो और समान कुल हो, उनका ही विवाह और मैत्री संगत है। इसके विपरीत एक उत्तम हो और दूसरा हीन हो, तो विवाह और मैत्री करना योग्य नहीं है, अतएव जो कुल शील एवं जाति से समान हों तथा जिनका देश, वंश और कार्य परस्पर जानते हों, उनमें ही विवाह सम्बन्ध करना चाहिए।20 सुकुमारचारित्र में विवाह हेतु सात गुणों की परीक्षा करने का निर्देश दिया गया है। इसमें कहा गया है-'कन्या के पिता अथवा अभिभावक को चाहिए कि वह कुलीन, शीलवाहक, स्वस्थ, वयस्क, विद्वान्, धर्म सम्पन्न और भरे-पूरे कुटुम्ब से युक्त वर के साथ अपनी कन्या का विवाह करे, फिर भी यदि कन्या को ससुराल में कष्ट मिले, तो यह उसका दुर्भाग्य है। महाभारत में कहा गया है कि समान धन, समान विद्या वालों में ही मैत्री एवं वैवाहिक सम्बन्ध सफल होते हैं, असमानता वालों के नहीं।21 जैन ग्रन्थों में यह उल्लेख भी देखा जाता है कि 'यदि पति-पत्नी में वैचारिक मेल है, उनमें आपसी सूझबूझ अच्छी है, तो उनका गृहस्थाश्रम भी सफल है। यदि परस्पर सौहार्द्र एवं सौमनस्य न हो, तो दाम्पत्य जीवन निष्फल हो जाता है।
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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