________________
विवाह संस्कार विधि का त्रैकालिक स्वरूप ...255 अक्षुण्ण रहती है, सम्पत्ति के उत्तराधिकारी की समस्या का समाधान हो जाता है और पितरों के श्राद्ध की परम्परा भी अविच्छिन्न रूप से चलती रहती है, अतः अविवाहित रहना पूर्वजों के विरूद्ध एक पाप एवं अपराध है। एथेन्स में यह भावना इतनी बद्धमूल हो गई है कि एक अधिनियम द्वारा नगर के प्रथम शासक को इस बात की देखभाल करने का आदेश दिया जाता है कि कहीं कोई वंश उच्छिन्न न हो जाए।11 प्लूटार्क लिखता है कि स्पार्टा में अविवाहित व्यक्ति अनेक अधिकारों से वंचित कर दिया जाता है और युवक अविवाहित वयोवृद्धों का आदर नहीं करते हैं। अन्य राष्ट्रों की भाँति रोम भी विवाह को महत्त्वपूर्ण मानता है तथा सार्वजनिक दृष्टि से अविवाहित रहने को अवांछनीय समझता है।
ईसाई धर्म के एक नेता ने लिखा है- 'भ्रष्टाचार के निरोध के लिए प्रत्येक पुरूष की अपनी पत्नी होनी चाहिए और प्रत्येक स्त्री का अपना पति। यदि अविवाहित पुरूष और स्त्रियाँ संयम-सदाचार एवं शीलमय जीवन का पालन कर सकें तो अति उत्तम है, किन्तु उनमें यह क्षमता न हों, तो विवाह कर लेना चाहिए, क्योंकि भ्रष्टाचार व अन्तर्दाह की अपेक्षा विवाह ही अच्छा है।12।
इस विवेचन से फलित होता है कि वंश परम्परा को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए, कुछ सामाजिक अधिकारों को प्राप्त करने के लिए, पारिवारिक दायित्वों का समुचित रूप से निर्वहन करने के लिए, एक उन्नत एवं सदाचारमय समाज की स्थापना करने के लिए, भ्रष्टाचार और स्वच्छंदता की परम्परा को रोकने के लिए तथा गृहस्थाश्रम का परिपालन करने के लिए विवाहसंस्कार की आवश्यकता महसूस की गई और वह उक्त सभी द्रष्टियों से अर्थ पूर्ण है। इस आधार पर विवाह शारीरिक ही नहीं, एक भावनात्मक सम्बन्ध भी है। इसके साथ यह समझ लेना भी जरूरी है कि शारीरिक सम्बन्ध भावनात्मक सम्बन्धों के बिना अपूर्ण है। विवाह संस्कार की प्राचीनता
सभी परम्पराओं में विवाह संस्कार को एक पवित्र संस्कार के रूप में माना गया है। यह गृहस्थ जीवन की एक उत्तम संस्था मानी गई है। इस संस्कार के माध्यम से बहुत से उद्देश्यों एवं प्रयोजनों को पूर्ण किया जाता है। जब हम इस संस्कार के उद्भव, विकास एवं प्राचीनता को लेकर विचार करते हैं, तो यह संस्कार जैन एवं वैदिक-दोनों परम्पराओं की अपेक्षा से प्राचीनतम सिद्ध होता है।