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244...जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन
क्रम की दृष्टि से- इस संस्कार क्रम को लेकर मनन करें तो श्वेताम्बरादि परम्पराओं में इस संस्कार का क्रम पूर्णतः समान नहीं है। श्वेताम्बर एवं दिगम्बर मत में इसका स्थान तेरहवाँ है, जबकि वैदिक मत में यह दसवें स्थान पर है। ____ अधिकारी की दृष्टि से- श्वेताम्बर एवं दिगम्बर दोनों धाराएँ इस संस्कार को कराने के अधिकारी जैन ब्राह्मण को मानती हैं, यही तथ्य वैदिक परम्परा में भी मान्य है, किन्तु वह गुरु (आचार्य) को भी इसके कर्ता के रूप में मानती है। इस तरह हिन्दू धर्म में कुछ विधि-विधान ब्राह्मण द्वारा, तो कुछ विधि-विधान गुरु द्वारा किए जाते हैं।
शुभ दिन की दृष्टि से- यह संस्कार किस दिन किया जाना चाहिए? इस बात को लेकर तीनों परम्पराओं में शुभ नक्षत्र आदि का उल्लेख है। विशेष इतना है कि आचारदिनकर में यह चर्चा अधिक विस्तृत और विधि-निषेध के साथ की गई है। ___काल की दृष्टि से- सामान्यतया दिगम्बर एवं वैदिक मत में इस संस्कार का काल बालक के जन्म से पाँचवां वर्ष माना गया है अर्थात जब बालक पाँच वर्ष का हो जाए तो विद्यारम्भ संस्कार कर देना चाहिए। इसमें दोनों धाराएँ समान हैं, किन्तु वैदिक मत से अपवादत: यह संस्कार उपनयन के पूर्व तक कभी भी किया जा सकता है। श्वेताम्बर आचार्यों ने काल का निर्देश नहीं किया है।
स्थान की दृष्टि से- श्वेताम्बर एवं दिगम्बर ग्रन्थों के अनुसार यह संस्कार जिनालय में किया जाना चाहिए। श्वेताम्बर आचार्यों के अनुसार वैकल्पिक रूप से यह संस्कार उपाश्रय या कंदबवृक्ष के नीचे भी किया जा सकता है तथा दिगम्बर मत से गृह-आंगन में कर सकते हैं। वैदिक ग्रन्थों में स्थान विशेष का कोई उल्लेख नहीं है।
मन्त्र की दृष्टि से- श्वेताम्बर आदि तीनों परम्पराओं में विद्यारम्भ के पूर्व कहे जाने वाले मन्त्रों में लगभग भिन्नता है तथा तत्कालीन विधि में भी अन्तर है। श्वेताम्बर परम्परा में यह संस्कार प्रारम्भ करने के पूर्व उपनीत के दाहिने कान में सरस्वती-मन्त्र सुनाने का निर्देश है। दिगम्बर परम्परा में 'ऊँ-ॐ नमः सिद्धेभ्यः' मन्त्र लिखवाने एवं उच्चारण करवाने का उल्लेख है। वैदिक मत में भी पूर्वोक्त कुछ अक्षरों और कुछ मन्त्रों को लिखने एवं उच्चारित करवाने का वर्णन है।