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________________ विद्यारम्भ संस्कार विधि का रहस्यात्मक स्वरूप ...245 विधि की दष्टि से- विद्यारम्भ संस्कार विधि को लेकर विचार करें, तो उनमें आंशिक समानता और बहुत-सी विभिन्नताएँ दृष्टिगत होती हैं। तीनों परम्पराओं में संस्कार प्रारम्भ करने से पूर्व अपने-अपने इष्ट देवों एवं परमात्माओं की पूजा तथा उनकी आराधना करने को आवश्यक माना है। दिगम्बर के अतिरिक्त शेष दो परम्पराओं में विधिकारक ब्राह्मण को दक्षिणा देना भी आवश्यक बतलाया है। यदि अन्तर की दृष्टि से देखें, तो श्वेताम्बर परम्परानुसार बालक को उत्सव-महोत्सव के साथ पाठशाला ले जाना, यतिगुरु के दर्शन करवाना तथा वर्ण के अनुसार विद्याध्ययन करवाना अनिवार्य है। ये विधि-कृत्य शेष दो धाराओं में प्रचलित नहीं हैं। वैदिक परम्परा में निर्दिष्ट लेखनी द्वारा चावल के ऊपर कुछ अक्षर एवं मन्त्र आदि लिखवाये जाते हैं। यह विधि शेष दो धाराओं में प्रचलित नहीं है। संक्षेपत: यह संस्कार अतीव महत्त्व का है। बालक के लिए अनुकूल वातावरण बनाने हेतु इस संस्कार के माध्यम से बहुत से कार्य सम्पन्न किए जाते हैं। ये कार्य इतने प्रभावपूर्ण होते हैं कि विद्यार्थी को अनायास ही विद्याभ्यास के लिए प्रेरित कर देते हैं। वर्तमानकाल में यह विधि पूर्णतया सुरक्षित है या नहीं? कहना कठिन है, किन्तु इतना अवश्य है कि इसकी मौलिकता इतिहास के पृष्ठों पर सदैव अक्षुण्ण रहेगी। उपसंहार लिपि में प्रयुक्त होने वाले अक्षरों से जिस संस्कार का श्रीगणेश किया जाएं, उसे अक्षरारम्भ या विद्यारम्भ-संस्कार कहते हैं। यह संस्कार बालक को विद्याध्ययन करवाने के लिए किया जाता है। विद्या मनुष्य की असली पहचान है। इस दुनियाँ में प्रत्येक मानव का विकास या ह्रास विद्या को ग्रहण करने अथवा ग्रहण नहीं करने पर आधारित है। सृष्टि के समस्त प्राणियों में मानवजाति का सर्वोपरि स्थान है। उसका केवल एक ही कारण है उसकी ज्ञानार्जन क्षमता। यदि मनुष्य के पास विद्या न हो, तो अन्य प्राणी भी उससे अधिक सम्मानित हो सकते हैं, किन्तु यथार्थ में वैसा है नहीं। ___ हम देखते हैं कि जो व्यक्ति सुशिक्षित होता है, उसे ही समाज में उच्च पद पर बिठाया जाता है, उसे सर्वत्र अग्रिम स्थान मिलता है, उसकी महिमा एवं गरिमा दिन-दुगनी बढ़ती चली जाती है। वह परिवार से लेकर राष्ट्र तक शान्ति,
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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