________________
विद्यारम्भ संस्कार विधि का रहस्यात्मक स्वरूप 241
मात्र अक्षर ज्ञान न रहकर जीवन निर्माण करने वाली तथा हितकारी बने। इस संस्कार या समारोह द्वारा बालक के मन में ज्ञान प्राप्ति के लिए उत्साह पैदा किया जाता है। उत्साहवर्द्धक मनोभूमि में देवाराधन तथा तत्सम्बन्धी कृत्यों से वाँछित ज्ञानपरक संस्कारों का बीजारोपण भी संभव होता है।
दूसरा उल्लेखनीय यह है कि विद्यारंभ संस्कार में की जाने वाली सभी विधियाँ विशिष्ट महत्त्व वाली हैं और किसी-न-किसी प्रयोजन से सम्बन्धित हैं अतः बालक की मनोभूमि पर उन विधि- विधानों का भी प्रभाव पड़ता है। कुछ विधि-विधानों के प्रयोजन इस प्रकार हैं
गणेश पूजन क्यों ? गणेश को विद्या का और सरस्वती को शिक्षा का देवता माना गया है। विद्या और शिक्षा- दोनों एक-दूसरे की पूरक हैं। एक के बिना दूसरी अधूरी है। शिक्षा उसे कहते हैं, जो स्कूलों में पढ़ाई जाती है । भाषा, लिपि, गणित, इतिहास, चिकित्सा आदि विभिन्न प्रकार के भौतिक - ज्ञान इसी क्षेत्र में आते हैं। शिक्षा से मस्तिष्कीय क्षमता विकसित होती है। शिक्षा को लौकिक प्रगति की कुंजी कह सकते हैं, इसीलिए कहा गया है भगवती सरस्वती की जो आराधना करता है, उसे लौकिक - सुख-साधनों की कमी नहीं रहती है।
विद्या का प्रतिनिधित्व गणेश करते हैं। विद्या का अर्थ है- विवेक एवं सद्भाव की शक्ति। गणेश का स्मरण या पूजन शुभ कार्य में सबसे प्रथम किया जाता है, इसका तात्पर्य यह है कि उस कार्य के मूल में सदुद्देश्य का समावेश हो। उसी के द्वारा व्यक्ति एवं समाज का वास्तविक कल्याण संभव है। कितनी बार चतुर व्यक्ति अनुचित कार्यों से सफलताएँ तो प्राप्त कर लेते हैं, पर उनका अन्ततः दुष्परिणाम ही होता है। गणेश-पूजन द्वारा प्रत्येक कार्य निर्विध्नतया हो यह अपेक्षा की जाती है इसलिए किसी भी कार्य के प्रारम्भ में गणेश-पूजन किए जाने की परम्परा अति प्राचीनकाल से चली आ रही है।
सरस्वती मन्त्र की आराधना किसलिए? जैन-परम्परा में विद्यारंभ संस्कार की मूल विधि का प्रारम्भ करते समय सरस्वती - मन्त्र सुनाया जाता है और वैदिक परम्परा में सरस्वती का पूजन किया जाता है। इसका मूल कारण यह है कि सभी देवियों में यह प्राचीनतम मानी गई है। इसे ज्ञान की देवी कहा है। ज्ञान की साधना इस संसार में सर्वोपरि पुरुषार्थ है। मानसिक-विकास पर व्यक्तित्व का विकास निर्भर है और विकसित व्यक्तित्व द्वारा ही सर्व शक्तियाँ