SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 298
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 240...जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन लक्ष्मीनारायणाभ्यां नमः। इसके अनन्तर 'ॐ नमः सिद्धाय' लिखा जाता है18, तब बालक गुरु की अर्चना करता है। उसके बाद गुरु बालक से लिखे हुए अक्षरों और उक्त वाक्यों को बालक से तीन बार पढ़वाते हैं। तत्पश्चात बालक गुरु को वस्त्र आभूषण आदि भेंट करता है और देवताओं की तीन प्रदक्षिणा करता है। इस अवसर पर ब्राह्मणों को दक्षिणा दी जाती है तथा उन्हें सम्मानित किया जाता है। वे बालक को आशीर्वाद देते हैं। जो नारियाँ सौभाग्यवती और पुत्र वाली हैं, वे आरती उतारती हैं। अन्त में गुरु को एक पगड़ी या साफा भेंट किया जाता समावर्त्तन संस्कार- वैदिक परम्परा में तेरहवाँ समावर्तन नाम का संस्कार कहा गया है। समावर्तन का शाब्दिक अर्थ है-सम्यक् शिक्षा ग्रहण कर गृहस्थ जीवन में पुनः लौटना। समावर्तन विद्याध्ययन का अन्तिम संस्कार है। विद्याध्ययन पूर्ण हो जाने के अनन्तर वेदपठित ब्रह्मचारी गुरु की आज्ञा पाकर अपने घर में समावर्तित होता है अर्थात लौटता है इसीलिए इसे समावर्तन संस्कार कहा जाता है। इस संस्कार के पश्चात शिष्य को गृहस्थाश्रम में जाने की अनुमति मिल जाती है। ___ इस संस्कार में वेद मन्त्रों से अभिमन्त्रित जलपूरित आठ कलशों से विशेष विधि पूर्वक ब्रह्मचारी को स्नान कराया जाता है, इसीलिए यह वेद स्नान संस्कार भी कहलाता है। इस संस्कार में गुरु दक्षिणा प्रदान करना, मौंजी-मेखला का त्याग करना, गुरु द्वारा जीवनोपयोगी शिक्षा प्रदान करना आदि कृत्य सम्पन्न किए जाते हैं। आजकल के दीक्षान्त समारोह भी समावर्तन-संस्कार का ही एक अनुकरण रूप है। विद्यारंभ संस्कार सम्बन्धी क्रियाकलापों के बहु पक्षीय प्रयोजन विद्यारम्भ नामक यह संस्कार बालक या बालिका को पहली बार विद्याध्ययन करवाए जाने से सम्बद्ध है। जब बालक पहली बार पाठशाला या गुरुकुल में पढ़ने जाता है, उस दिन यह संस्कार सम्पन्न करते हैं। उसके बाद उसका विद्याध्ययन निश्चित अवधि के लिए शुरू हो जाता है। सामान्यत: विद्यारम्भ संस्कार द्वारा बालक या बालिका में उस प्रकार के संस्कारों के आरोपण का प्रयास किया जाता है, जिनके आधार पर उनकी शिक्षा
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy