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विद्यारम्भ संस्कार विधि का रहस्यात्मक स्वरूप ...237 विद्यारंभ संस्कार का कर्ता कौन?
श्वेताम्बर परम्परानुसार यह संस्कार जैन ब्राह्मण या क्षुल्लक करवा सकता है। दिगम्बर परम्परा में यह संस्कार द्विज करवाता है, यद्यपि इसका स्पष्ट उल्लेख नहीं है तथा वैदिक परम्परा में इस संस्कार सम्बन्धी कुछ विधान ब्राह्मण करवाता है और कुछ विधान विद्या गुरु निष्पन्न करता है। विद्यारंभ संस्कार के लिए ग्राह्य और वर्जित नक्षत्र आदि का विचार
__ आचारदिनकर में विद्यारंभ संस्कार हेतु निम्न नक्षत्र आदि शुभ माने गए हैं। नक्षत्रों में-अश्विनी, मूल, पूर्वात्रय, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा, हस्त, शतभिषा, स्वाति, चित्रा, श्रवण और धनिष्ठा, तिथियों में-द्वितीया, तृतीया, पंचमी, सप्तमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी एवं त्रयोदशी वारों में-बुध, गुरु और शुक्र शुभ माने गए हैं। पुन: वारों में- रवि और सोम मध्यम तथा मंगल और शनि त्याज्य कहे गए हैं। तिथियों में-अमावस्या, अष्टमी, प्रतिपदा, चतुदशी, रिक्ता, षष्ठी और नवमी ही मानी गईं हैं। यहाँ ज्ञातव्य है कि इन नक्षत्र आदि का सुयोग होने पर भी उपनयन संस्कार की भाँति शुभ लग्न में ही विद्यारंभ संस्कार आरम्भ करना चाहिए। दिगम्बर परम्परा इस संस्कार के लिए निम्न नक्षत्र आदि को शुभ मानती है। नक्षत्रों में-हस्त, अश्विनी, पुनर्वसु, पुष्य, चित्रा, अनुराधा, तिथियों में-द्वितीया, तृतीया, पंचमी, षष्ठी, दशमी, एकादशी
और द्वादशी वारों में-सोम, बुध, शुक्र, शनि-ये दिन विद्यारम्भ हेतु उत्तम कहे गए हैं।10
वैदिक परम्परानुसार इस संस्कार के लिए यह निर्देश किया गया है कि बालक के पाँचवें वर्ष कार्तिक शुक्लपक्ष के बारहवें दिन से आषाढ़ शुक्लपक्ष के ग्यारहवें दिन तक किसी भी दिन, किन्तु प्रतिपदा, षष्ठी, अमावस्या तथा रिक्ता तिथियों को और शनि-मंगल को छोड़कर विद्यारम्भ करना चाहिए।11 विद्यारंभ संस्कार हेतु उपयुक्त काल
श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार यह संस्कार कब किया जाना चाहिए, इसका उल्लेख नहीं मिलता है। दिगम्बर मतानुसार बालक के पाँच वर्ष पूर्ण होने पर यह संस्कार करना चाहिए।12 वैदिक विचारणा भी बालक के पाँचवें वर्ष में यह