________________
238...जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन
संस्कार करना स्वीकार करती है, किन्तु इस सम्बन्ध में अन्य मत भी प्रस्तुत किए गए हैं। विश्वामित्र के अनुसार बालक के जन्म से पाँचवें वर्ष में यह संस्कार करना चाहिए।13 पण्डित भीमसेन शर्मा की षोडश-संस्कार-विधि में किसी अज्ञातनामा स्मृतिकार के आधार पर यह संस्कार पाँचवें या सातवें वर्ष में किए जाने का निर्देश है। यदि किन्हीं अनिवार्य परिस्थितियों के कारण इसे स्थगित करना पड़ जाए तो उपनयन संस्कार के पूर्व किसी भी समय अवश्य कर लेना चाहिए। चूंकि उपनयन के समय बालक का द्वितीय जन्म होता है, अत: इसके पूर्व अक्षरारम्भ अवश्य करा देना चाहिए। इसके लिए मार्गशीर्ष से लेकर ज्येष्ठ मास तक का समय उपयुक्त है।14 विद्यारंभ संस्कार के लिए आवश्यक सामग्री ___यह संस्कार सम्पन्न करते समय कौन-कौनसी वस्तुएँ आवश्यक रूप से होनी चाहिए? इस विषय को लेकर दिगम्बर एवं वैदिक ग्रन्थों में कोई वर्णन देखने को नहीं मिलता है। श्वेताम्बर परम्परावर्ती ग्रन्थों में इस संस्कार सामग्री का स्पष्टत: उल्लेख हुआ है। इसमें पौष्टिक क्रिया की सामग्री, मंगलगीत गाने वाली, वादित्र बजाने वाले, सारस्वत मन्त्र के उपदेश की क्रिया, दक्षिणा सामग्री, दान सामग्री आदि अनिवार्य कहे गए हैं।15 विद्यारंभ संस्कार की प्राच्यकालीन विधि
श्वेताम्बर- • पूर्वोक्त किसी शुभ दिन में गृहस्थ गुरु उपनीत पुरुष के घर में आकर पौष्टिक कर्म करे। • उसके बाद वह गृहस्थ गुरु जिनालय, उपाश्रय या कदंब वृक्ष के नीचे दर्भ के आसन पर बैठे और शिष्य को अपनी बाईं ओर दर्भ के आसन पर बिठाए। • उसके बाद शिष्य के दाहिने कर्ण को पूजित कर तीन बार सरस्वती मन्त्र सुनाए।
• तत्पश्चात् वह गृहस्थ गुरु बैलगाड़ी या अश्व पर बिठाकर मंगलगीत गाते हुए एवं दान देते हुए गाजे-बाजे के साथ शिष्य को अपने घर या अन्य अध्यापक की शाला में ले जाने से पूर्व उपाश्रय में यति-गुरु के पास ले जाए। • वहाँ बालक द्वारा मंडलीपूजा, वासनिक्षेप आदि करवाए। फिर पाठशाला ले जाए। फिर शिष्य से गुरु के सम्मुख निम्न श्लोक पढ़वाए
अज्ञान तिमिरान्धानां, ज्ञानांजन शलाकया । नेत्रमुन्मीलितं येन, तस्मै श्री गुरवे नमः ।।