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226... जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन
प्रतिमा स्थापित कर प्रायः सभी प्रकार के कृत्य गृहस्थ गुरु के निर्देशानुसार स्थापित जिनबिंब के समक्ष ही सम्पन्न किए जाते हैं, जबकि दिगम्बर परम्परा में यह संस्कार विधि जिनालय में सम्पादित की जाती है, वहाँ वेदिका जैसी कोई क्रिया नहीं होती। वैदिक मत में इस संस्कार को प्रारम्भ करने के लिए एक मण्डप का निर्माण किया जाता है तथा प्रायः सभी कृत्य उसी मण्डप में निष्पन्न होते हैं।
• श्वेताम्बर परम्परावर्ती ग्रन्थों में चारों वर्णों के लिए व्रत बन्धन एवं व्रतादेश की पृथक-पृथक विधियाँ कही गईं हैं, जबकि दिगम्बर ग्रन्थों में यह विधि सभी वर्णों के लिए समान रूप से निर्दिष्ट है। वैदिक ग्रन्थों में व्रत बन्धन के अन्तर्गत किए जाने वाले कृत्य कौपीन, मेखला, यज्ञोपवीत आदि का उल्लेख वर्ण के आधार पर किया गया है, जबकि व्रतादेश की पृथक् रूप से कोई चर्चा ही नहीं हुई है।
• श्वेताम्बर मान्य आचारदिनकर में व्रत दान से सम्बन्धित गोदान विधि, वटुकरण विधि, शूद्र को उत्तरीय वस्त्र प्रदान करने की विधि आदि की अलग से चर्चा की गई है, परन्तु दिगम्बर एवं वैदिक साहित्य में इनका कोई वर्णन नहीं है।
• इस संस्कार सम्बन्धी क्रियाकाण्डों में सबसे अधिक विषमता इस बात को लेकर है कि कौपीन, मेखला, यज्ञोपवीत, दण्ड, वल्कल आदि साधन किस वस्तु से निर्मित होने चाहिए? इनका परिमाण कितना होना चाहिए ? इन्हें कितने समय तक के लिए धारण करना चाहिए? ये किन संकेतों के प्रतीक हैं? इत्यादि विवेचनाएँ तीनों परम्पराओं में भिन्न- भिन्न रूप से कही गई है।
मन्त्र की अपेक्षा - श्वेताम्बर, दिगम्बर एवं वैदिक इन तीनों परम्पराओं में इस संस्कार से सम्बन्धित अनेक मन्त्रों का निर्देश हैं। उन मन्त्र पाठों को लेकर तीनों परम्पराओं मे सर्वथा भिन्नता है। दूसरा अन्तर यह है कि श्वेताम्बर और वैदिक दोनों परम्पराओं में मन्त्रोच्चार का उल्लेख इस संस्कार की प्राय: प्रत्येक क्रिया में हुआ है, जबकि दिगम्बर ग्रन्थ में केवल दो मन्त्रों का ही निर्देश प्राप्त है - 1. यज्ञोपवीत पहनने का मन्त्र 2. बालक को संस्कारित कर आशीर्वाद देने का मन्त्र। श्वेताम्बर ग्रन्थों में निम्न मंत्र पाठों का उल्लेख है - 1. वेदी प्रतिष्ठा मन्त्र 2. उपनयन संस्कार आरम्भ करने का मन्त्र 3. जलाभिमन्त्रण मन्त्र