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उपनयन संस्कार विधि का आध्यात्मिक स्वरूप...227
4. मेखला, कौपीन, जिनोपवीत के मन्त्र 5. मेखला धारण मन्त्र 6. कौपीन धारण मन्त्र 7. जिनोपवीत धारण मन्त्र 8. पलाश काष्ठ के दंड ग्रहण का मन्त्र 9. मुद्रिका धारण मन्त्र आदि।
वैदिक ग्रन्थों में इस संस्कार से सम्बन्धित निम्न मन्त्रों का उल्लेख है1. बालक को उत्तरीय-वस्त्र प्रदान करने का मन्त्र 2. मेखला बन्धन मन्त्र 3. सावित्री मन्त्र 4. जल से अभिसिंचित करने का मन्त्र 5. यज्ञोपवीत नापने का मन्त्र 6. उपवीत को पवित्र करने का मन्त्र 7. यज्ञोपवीत को तिहरा मोड़ने का मन्त्र 8. उपवीत पर गाँठ लगाने का मन्त्र 9. उपवीत धारण करने का मन्त्र 10. उपवीत उतारने का मन्त्र आदि।
उपर्युक्त विवरण के आधार पर यह कहा जा सकता है कि श्वेताम्बर, दिगम्बर एवं वैदिक इन तीनों धाराओं में उपनयन संस्कार का अस्तित्व पुरातनकाल से रहा हुआ है। साथ ही एक परम्परा दूसरी परम्परा से प्रभावित भी रही है। यही कारण है कि अधिकतर विधि-विधान समानता को लिए हुए हैं। उपसंहार ___ उपनयन संस्कार विद्यार्थी जीवन के आरम्भ में सम्पन्न होने वाला एक महत्त्वपूर्ण संस्कार है। इस संस्कार को सम्यक् विधिपूर्वक एवं श्रद्धा-निष्ठा के साथ सम्पन्न किया जाए, तो निश्चित ही इसके सुपरिणाम होते हैं। इस संस्कार के माध्यम से बालक के जीवन का एक नया अध्याय प्रारम्भ होता है। वह एक कठोर अनुशासनात्मक जीवन में प्रवेश करता है। यह संस्कार इस तथ्य का प्रतीक भी है कि बालक विद्यार्थी के रूप में ज्ञानार्जन के पथ का पथिक बना है और उसे अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अपने निश्चय में दृढ़ रहना है।
उस बालक के समक्ष यज्ञोपवीत, कौपीन, मेखला धारण या सूर्य दर्शन आदि के जो भी प्रतीक प्रस्तुत किए जाते हैं, वे उसकी भावी जीवन-यात्रा के लिए सर्वाधिक महत्त्व रखते हैं। केवल धागे पहनना शरीर की पवित्रता को ही नहीं बढ़ाता है, बल्कि उस प्रतीक के प्रति सजग होकर यज्ञोपवीतधारी शरीर से, मन से और बुद्धि से पवित्र रहता है। वह आर्यत्व के नियमों का पालन करता है। मन, वचन और कर्म को अपवित्रता से बचाए रखता है और सत्यता के मार्ग पर बढ़ता चला जाता है।
इस तरह इस संस्कार का प्रत्येक चरण विविध विशेषताओं से भरपूर है। इस संस्कार द्वारा बालक न केवल विद्या या बुद्धि के क्षेत्र में ही विकास करता