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________________ 222...जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन तो कोई नाटा, कुछ स्थूल शरीर वाले होते हैं, तो कुछ दुबले-पतले अत: सभी व्यक्तियों के लिए समान परिमाण के उपवीत धारण करने का नियम क्यों बनाया गया? पं. शिवदत्त वाजपेयी ने इसका समाधान करते हुए निम्न हेतु ये बतलाए हैं100_ ___1. यज्ञोपवीत कटि तक ही रहें- भारतीय मनीषियों ने शास्त्रीय आधार पर यह परिमाण निर्धारित किया है। शास्त्रोक्त प्रमाण से यज्ञोपवीत धारण करने पर वह पुरुष के बाएं कन्धे के ऊपर से आता हुआ नाभि को स्पर्श कर कटि तक ही पहुँचता है। जनेऊ इससे न तो ऊपर रहना चाहिए और न ही नीचे। यज्ञोपवीत अत्यन्त छोटा होने पर आयु का तथा अधिक बड़ा होने पर तप का विनाशक होता है, अधिक मोटा रहने पर यश नाशक और पतला होने पर धन नाशक होता है। इस निर्णय को सामुद्रिक शास्त्र ने उचित ठहराया है। उसके अनुसार मनुष्य का कद और स्वास्थ्य कैसा भी हो, मानव शरीर का आयाम 84 अंगुल से 108 अंगुल तक होता है। इसका मध्यमान 96 अंगुल ही होता है अत: इस परिमाण वाला यज्ञोपवीत हर स्थिति में कटि तक ही रहेगा। 2. गायत्री मन्त्र के 24 अक्षरों के आधार पर- गायत्री मन्त्र में चौबीस अक्षर होते हैं। चारों वेदों में निहित गायत्री छन्द के सम्पूर्ण अक्षरों को मिला दें, तो 24 x 4 * 96 अक्षर होते हैं। इसी के आधार पर द्विज बालक को गायत्री और वेद-दोनों का अधिकार प्राप्त होता है, इसलिए 96 अंगुल वाले यज्ञोपवीत को ही धारण करने का विधान किया गया है। ___3. वैदिक मन्त्रों की संख्या के आधार पर- ‘लक्षं तु चतुरोवेदा लक्षमेकं तु भारतम्' इस वचन के अनुसार वैदिक-ऋचाओं की संख्या एक लाख है। वेदभाष्य में पतंजलि ने भी इसकी पुष्टि की है। इस लक्ष मन्त्रों में 80,000 कर्मकाण्ड सम्बन्धी और 16,000 उपासनाकाण्ड सम्बन्धी ऋचाएँ है। चूंकि उपनीत को कर्मकाण्ड और उपासनाकाण्ड का विवेचन करने का अधिकार प्राप्त होता है, अत: 96,000 ऋचाओं के अधिकार के आधार पर उपवीत का परिमाण 96 चौआ निर्धारित किया गया है। 4. तिथि, वार, गुण आदि के आधार पर- यह मानव जीवन तत्त्व, गुण, तिथि, वार, नक्षत्र, काल, मास आदि विविध भागों से निरन्तर सम्पर्क में
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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