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________________ उपनयन संस्कार विधि का आध्यात्मिक स्वरूप ...221 उसमें श्रेष्ठ विचारों के बीज जम नहीं सकते, अत: ऋषि ऋण के उऋण होने का मार्ग यही है कि हम स्वाध्याय, सत्संग और मनन द्वारा अपनी मनोभूमि को उत्कृष्ट बनाएं और अन्यों को भी उस मार्ग में जोड़ें। _ पितृ का अर्थ है पूर्वज। जिन लोगों ने हमें जन्म देकर योग्य बनाया है, उनके प्रति हमारा कर्तव्य प्रत्यक्ष ही बनता है। यह इतिहास बताता है कि किसी समय भारतवासियों का गौरव समस्त जगत में व्याप्त था और वे 'जगत्गुरु' की पदवी से अलंकृत किए गए थे। उनके ऋण को चुकाने का तरीका यही है कि हम भी ऐसे काम करें, जिससे उनका गौरव उत्तरोत्तर बढ़े। इस प्रकार देव ऋण, ऋषि ऋण और पितृ ऋण को चुकाने एवं मानव जन्म को सार्थक करने का सही सन्देश यज्ञोपवीत के माध्यम से प्राप्त होता है। उस सन्देश की प्रेरणा यही है कि जब तक अपने कर्तव्य का उचित रूप से पालन करते हुए, अपनी शक्तियों को सेवा परोपकार में लगाओगे नहीं तथा तीनों ऋणों को चुकाओगे नहीं, तब तक एक प्रकार का बन्धन घिरा रहेगा। इस प्रकार यज्ञोपवीत सदैव हमारे कन्धे पर रहकर हमको महत्त्वपूर्ण उपदेश और शिक्षाएँ प्रदान करता रहता है। शिखा धारण का मुख्य ध्येय- उपनयन-संस्कार में शिशु के बाल प्रथम बार उस्तरे से काटे जाते हैं और सिर के पिछले हिस्से के ऊपरी भाग में कुछ बालों का समूह छोड़ दिया जाता है, जिसे शिखा, चूड़ा, शिरा आदि कहते हैं। जहाँ शिखा रखी जाती है, वह स्थल ज्ञान केन्द्र का माना गया है। वहाँ शिखा रखने का तात्पर्य यह है कि बालों का एक समूह हमेशा शीतलता प्रदान करता रहे और उसके फलस्वरूप ज्ञान केन्द्र की क्रियाशीलता में वृद्धि होती रहे।99 . इस प्रकार यज्ञोपवीत संस्कार द्वारा शारीरिक, मानसिक एवं मस्तिष्क के क्रिया-कलापों पर प्रभावकारी प्रतिक्रिया तो होती ही है। साथ ही एक सुन्दर एवं स्वस्थ वातावरण में व्यक्तित्व का निर्माण भी किया जाता है। यज्ञोपवीत का परिमाण 96 चौआ ही क्यों? यज्ञोपवीत निर्माण के सम्बन्ध में पहला प्रश्न यह उपस्थित होता है कि यज्ञोपवीत का परिमाण 96 अंगुल ही क्यों निर्धारित किया गया? दूसरा प्रश्न यह है कि प्रत्येक वर्ष में हर व्यक्ति एक ही कद और काठी का नहीं होता है, कोई ऊंचे कद का होता है,
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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