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________________ 218...जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन उससे देह-बल के साथ मनोबल भी बढ़ता है। हर धर्मप्रेमी को अनीति का प्रबल विरोध करने के लिए सदा तत्पर रहना चाहिए, लाठी इसी तत्परता का एक प्रतीक है। लाठी आमतौर से बाँस की होती है। बाँस की अनेक गाँठे मिलकर पूरा दण्ड बनता है। इसका प्रयोजन यह है कि अनेक व्यक्तियों के मिल-जुलकर रहने से विपुल शक्ति का निर्माण होता है। संघ शक्ति ही इस युग में सर्वोपरि है। उसी के द्वारा धर्म रक्षा एवं अधर्म का प्रतिकार संभव है। ___दण्ड, सत्ता एवं उत्तरदायित्व का भी प्रतीक है। शासनाध्यक्ष के हाथ में एक ‘दण्ड' अभिषेक एवं शपथ ग्रहण करते समय सौंपा जाता है। यह राजसत्ता हाथ में लेने का प्रतीक है। पुलिस तथा फौज के वरिष्ठ अफसरों के हाथ में भी एक छोटा सा दण्ड रहता है, यह राजसत्ता को सम्भाले रहने की भावना का प्रतीक है। कितने ही संन्यासी हाथ में धर्म दण्ड रखते हैं। इसका अर्थ है कि वे धर्म रक्षा का उत्तरदायित्व अपने हाथ एवं कन्धों पर लिए हुए हैं। यज्ञोपवीतधारी के हाथ में भी यह दण्ड इस आशा के साथ सौंपा जाता है कि वह आजीवन यह उत्तरदायित्व अनुभव करें कि उसे व्यक्तिगत जीवन में ही धर्मात्मा नहीं रहना है, वरन् समाज में संसार में जो अधर्म हो रहा है, उसका प्रतिकार करने के लिए भी यथाशक्ति प्रयत्नशील रहना है। सूर्य दर्शन की परम्परा क्यों? वैदिक परम्परा में विद्यार्थी को सूर्य दर्शन करवाना आवश्यक कृत्य माना गया है। सूर्य दर्शन करते-करवाते हुए सूर्य के समान तेजस्वी बनना, गतिशील रहना, लोक कल्याण के लिए जीवन समर्पित करना, स्वयं प्रकाशित होना, अपने प्रकाश से दूसरों को प्रकाशित करना अन्धकार रूपी अज्ञान को दूर करना, जैसी अनेक प्रेरणाएँ ग्रहण की जाती हैं। सूर्य उदय होते हुए लाल और अस्त होते हुए भी लाल रहता है, उसी प्रकार विद्यार्थी को यह प्रेरणा प्राप्त करनी है कि वह उदय और अस्त में, लाभ और हानि में संतुलित, धैर्य युक्त एवं एक सा रहे। धूप-छाँव की तरह जीवन में आने वाली प्रिय-अप्रिय परिस्थितियों का शान्तचित्त से सामना करे। सूर्य किरणों की गर्मी निर्जीव प्रकृति को सजीव बनाती है, वनस्पति जगत् में प्राणों का संचार करती है, अत: बालक द्वारा सूर्य के दर्शन करते हुए इन आदर्शों पर चलने की संकल्पना की जानी चाहिए।
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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