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उपनयन संस्कार विधि का आध्यात्मिक स्वरूप ...217 मेखला और कौपीन धारण क्यों? मेखला और कौपीन धारण करने का प्रयोजन ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए प्रत्येक कार्य में जागरूक, निरालस एवं कर्तव्य-पालन में कटिबद्ध रहने की प्रेरणा देना है। यह शरीर शास्त्र का नियम है कि लड़कियों की शारीरिक-अभिवृद्धि बीस वर्ष की आयु तक और लड़कों की पच्चीस वर्ष तक होती है। यह समय दोनों के लिए सजगता पूर्वक शक्ति के सरंक्षण का है, ताकि उनका उपयोग शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य की नींव पक्की करने में हो सके। यह अवधि विद्या पढ़ने एवं जीवन निर्माण करने की है। जो इस उम्र का मूल्य नही समझते हैं, वे एक प्रकार से आत्महत्या ही करते हैं। कौपीन पहनाकर व्रत धारण करवाया जाता है तथा ब्रह्मचर्य के महत्त्व को समझने की प्रेरणा दी जाती है। कमर में मेखला बांधने का प्रयोजन वही है, जो पुलिस, फौज एवं सैनिक कमर में पट्टा बाँधकर पूरा करते हैं। कमर बाँधना जागरूकता एवं सतर्कता का चिह्न है। आलसी और लापरवाह व्यक्ति अपनी ही क्षति करते हैं। यदि जागरूक चोर और लापरवाह चौकीदार में तुलना की जाए, तो लापरवाह चौकीदार अधिक हेय माना जा सकता है, क्योंकि चोर अपना काम भी बना लेता है और जागरूकता के कारण जहाँ रहता है वहाँ अपना नुकसान भी नहीं होने देता। इसके विपरीत लापरवाह चौकीदार न अपना काम बना पाता है, न दूसरों का अत: आलस्य चाहे शारीरिक हो, चाहे मानसिक, उसे साक्षात् दुर्भाग्य ही कहना चाहिए।
इस बुरी आदत से सर्वथा बचा जाए, इसके लिए मेखला पहनाते हुए यज्ञोपवीतधारी को यह प्रेरणा दी जाती है कि वह इस कार्य क्षेत्र में सदा अपने कर्तव्यपालन के लिए फौजी या सैनिक की तरह कटिबद्ध रहे तथा जागरूकता
और सतर्कता को, स्फूर्ति और आशा को, साहस और धैर्य को, अपना सच्चा सहचर समझे।
दण्डधारण के मुख्य उद्देश्य- यज्ञोपवीत धारण करने वाले को कौपीन और मेखला के उपरान्त दण्ड दिया जाता है। यह लाठी कईं प्रयोजनों को लेकर दी जाती है। इस लाठी के माध्यम से दैनिक उपयोग में कुत्ते आदि से रक्षा, पानी की थाह लेना, अपनी शक्ति एवं साहसिकता का प्रदर्शन आदि कईं लाभ होते हैं। शस्त्र-सज्जा में लाठी अधिक विश्वस्त और सर्व सुलभ है। उसे साथ रखने से साहस बढ़ता है। लाठी चलाना एक बहुत ही उच्च-स्तर का व्यायाम है।