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उपनयन संस्कार विधि का आध्यात्मिक स्वरूप ...211 उपवास करके नया धारण करना चाहिए। • प्रेत-क्रिया में दाहिने कन्धे पर और बाईं काँख के नीचे इस प्रकार विपरीत क्रम से धारण करना चाहिए, क्योंकि वह विपरीत कार्य है। इसी क्रम में गोदान विधि, शूद्र को उत्तरीय वस्त्र देने की विधि, बटकरण विधि भी कही गई है। इन विधियों का स्वरूप आचारदिनकर नामक ग्रन्थ से जानना चाहिए।
दिगम्बर- दिगम्बर परम्परा में उपनयन संस्कार की निम्नलिखित विधि प्राप्त होती है
सर्वप्रथम उपनयन संस्कार इच्छुक बालक जिनालय में अरिहन्त देव की पूजा करे। फिर उस बालक को व्रत (अभिग्रह नियम) दिलवाएं। उसके बाद उसके कमर में तीन लड़ की बनी हुई मूंज की रस्सी बांधे। फिर व्रतों के चिह्न स्वरूप और मन्त्रों से पवित्र किया हुआ सूत्र-यज्ञोपवीत पहनाएं। यज्ञोपवीत धारण करने पर वह बालक द्विज कहलाता है। पहले तो वह जन्म से ही ब्राह्मण था और अब व्रतों से संस्कृत होकर दूसरी बार उत्पन्न हुआ है, इसलिए उसे द्विज कहा जाता है। उस समय गुरु द्वारा उस उपनीत को अणुव्रत, गुणव्रत और शिक्षाव्रत दिलवाना चाहिए। इस अवसर पर उसके आचरण के योग्य और भी नाम रखे जा सकते हैं।78 इस परम्परा में उपनयन संस्कार की सामान्य रूप से यही विधि उपलब्ध है। परवर्तीकाल में इसमें होमादि अनुष्ठान भी सम्मिलित कर दिए गए हैं।
उपनयन संस्कारी की विशेष क्रियाएँ- दिगम्बर परम्परा में उपनीत सिर पर चोटी रखता है, सफेद धोती पहनता है, सफेद दुपट्टा रखता है, मेखला बांधता है और जब तक विवेचन करता है, तब तक ब्रह्मचर्यव्रत का पालन करता है। दिगम्बर साहित्य में यह भी उल्लेख आता है कि उस दिन राजपुत्र को छोड़कर शेष को भिक्षावृत्ति से निर्वाह करना चाहिए और राजपत्र को भी अन्तःपुर में जाकर माता आदि से किसी पात्र में भिक्षा मांगनी चाहिए क्योंकि उस समय भिक्षा मांगने का नियम रहा है, साथ ही भिक्षा में जो कुछ प्राप्त हो, उसका अग्रभाग अरिहंतदेव को समर्पित कर शेष बचा हुआ आहार स्वयं को ग्रहण करना चाहिए।
दिगम्बर मान्यतानुसार उपनीत योग्य बालक को निम्न मन्त्रों से संस्कारित किया जाता है। इन्हें आशीर्वाद मन्त्र भी कहा गया है/9