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उपनयन संस्कार विधि का आध्यात्मिक स्वरूप ...209 करवाना, निर्ग्रन्थ की आज्ञा से प्रत्याख्यान करना और अन्य को करवाना।
क्षत्रिय व्रतादेश विधि- ब्राह्मण की व्रतादेश विधि के समान ही क्षत्रिय की व्रतादेश विधि कही जाती हैं। इसमें युद्ध आदि से सम्बन्धित कुछ नियम विशेष रूप से कहे जाते हैं। विधि पूर्वक साधुओं की उपासना करना। गृहस्थों के द्वादश व्रतों का पालन करना। शत्रुओं से घिरी हुई युद्ध भूमि में वीर रस को धारण करना। युद्ध में मौत का भय बिल्कुल भी नहीं रखना। देव, गुरु और मित्र की रक्षा के निमित्त एवं देश का विभाजन होने की स्थिति में (युद्ध में) मृत्यु को भी सहन करना। शौर्य द्वारा भूमि अर्जन करने वालों के लिए दुष्टों का निग्रह करना आदि।74
वैश्य व्रतादेश विधि- यह व्रतादेश विधि प्राय: ब्राह्मण व्रतादेश की तरह ही होती हैं। इसमें पशुपालन, खेती एवं व्यापार से सम्बन्धित कुछ नियम अतिरिक्त दिलाए जाते हैं।75
चतुर्वर्ण व्रतादेश विधि- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र इन चतुर्वर्णी अधिकारियों के लिए समान रूप से पालन करने योग्य नियम इस प्रकार हैं-देव की अर्चना, साधुओं की पूजा तथा ब्राह्मण एवं संन्यासियों को प्रणाम करना। न्याय-नीति द्वारा धन उपार्जन करना एवं परनिंदा का त्याग करना। कभी भी किसी की, आलोचना (अवर्णवाद) नहीं करना। जिस देश में पानी की कमी हो, नदी न हो एवं गुरु योग न मिलता हो, वहाँ निवास नहीं करना। राजा, सर्प, नीच, मंत्री, स्त्री, नदी, लोभी व्यक्ति एवं पूर्व के वैरियों का कभी भी विश्वास नहीं करना। कभी भी असत्य एवं अहितकर वचन नहीं बोलना। किसी से विवाद नहीं करना। सत्शास्त्रों का ही श्रवण करना। हीन अंग वाले एवं विकलागों का कभी उपहास नहीं करना। छ: शत्रुओं(क्रोध, मान, माया, मद, लोभ, मत्सर) पर विजय प्राप्त करना। गुणानुरागी बनना। देशानुरूप लोकाचार का पालन करना। दूरदर्शिता, कृतज्ञता एवं लज्जा को अपनाना। अपने और पराए का विवेक रखना। संध्या के समय मे, जलाशय में (जलाशय के किनारे) श्मशान में और देवालय में निद्रा, आहार एवं संभोग-क्रिया नहीं करना। कुएँ में प्रवेश, कुएँ का उल्लंघन एवं कुएँ के किनारे शयन-इन सबका वर्जन करना। बिना नाव के नदी पार नहीं करना। दुर्जनों की सभा में एवं जहाँ कुकर्म होते हों, उन स्थानों पर कभी नहीं बैठना। गड्ढे आदि को नहीं लांघना एवं दुष्ट स्वामी की सेवा नहीं