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________________ 208... जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन मुद्रिका को मन्त्रित करे। मुद्रिका अभिमन्त्रण का मन्त्र यह हैपवित्रं दुर्लभं लोके, सुरासुरनृवल्लभम् । सुवर्णं हन्ति पापानि, मालिन्यं च न संशयः । । जिनोपवीत अनुज्ञा विधि - उसके बाद उपनीत ब्रह्मचारी नमस्कारमन्त्र का उच्चारण करते चारों दिशाओं में गंध, पुष्प, अक्षत, धूप, दीप और नैवेद्य से जिनप्रतिमा की पूजा करे। • फिर जिनप्रतिमा और गुरु को प्रदक्षिणा करके वन्दन पूर्वक गुरु से निवेदन करे - मुझे उपनीत किया गया है क्या? मेरा व्रत बन्ध हो गया है क्या ? मुझे ब्राह्मण आदि जाति में स्थिर कर लिया है क्या ? मुझे नवब्रह्मगुप्ति रूप रत्नत्रय के पालन करने, करवाने एवं अनुज्ञा देने की अनुमति दी जा चुकी है क्या? इन सभी प्रश्नों का गृहस्थ गुरु उत्तर दे और उसे अनुमति प्रदान करे। • यह व्रतादेश विधि ब्राह्मण की अपेक्षा से कही गई है। कुछ मतान्तर के साथ क्षत्रिय एवं वैश्य की व्रतादेश विधि भी इसी प्रकार होती है। क्षत्रिय की व्रतादेश विधि में 'आदेश और समादेश' दोनों कहें, अनुज्ञा न कहे। वैश्य के लिए 'आदेश' ही कहे, समादेश और अनुज्ञा- दोनों नहीं कहें। ब्राह्मण व्रतादेश विधि- उसके बाद उपनीत ब्रह्मचारी व्रतादेश करने का निवेदन करे- तब गृहस्थ गुरु ब्राह्मण के लिए इस प्रकार व्रतादेश करें अर्थात नियम दिलायें - तुम परमेष्ठी महामन्त्र का सदैव स्मरण करना, तीनों काल अरिहंत देव की पूजा करना, सात बार चैत्यवंदन करना छाने हुए पानी से स्नान करना, द्विदल का सेवन मत करना, चारों आर्यवेद विधि पूर्वक पढ़ना, सत्य बोलना, अपनी जाति में भी मिथ्यात्वी और मांसाहारी के घर पर भोजन नहीं करना, उपवीत, स्वर्णमुद्रा और अंतरीय वस्त्र को कभी मत छोड़ना, व्रतारोपण को छोड़कर अवशेष पन्द्रह संस्कार निर्ग्रन्थ गुरु की आज्ञा से करना, सम्यक्त्व में दृढ़ रहना, अनार्य देश में मत जाना, त्रियोग की शुद्धि रखना, यावज्जीवन इन व्रतों/नियमों का पालन करना, कृषि, पशुपालन एवं सेवावृत्ति नहीं करना, सत्य बोलना, प्राणी रक्षा करना एवं दूसरे की स्त्री एवं धन की इच्छा नहीं करना, कषायों एवं विषयों का, दुःख आने पर भी सेवन नहीं करना, अपक्व अन्न मत खाना, नगर में भ्रमण करते हुए किसी की काया से स्पर्श मत करना, स्वयं के द्वारा बनाया हुआ ही भोजन करना, जिन - प्रतिमा की प्रतिष्ठा आदि
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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