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________________ 206...जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन रात्रि में करना चाहिए। • मेखला बंधन होने के बाद गृहस्थ गुरु एक बेंत(बारह अंगुल परिमाण) चौड़ा और तीन बेंत परिमाण लंबा कौपीन (लंगोट-धोती) दोनों हाथों में लेकर निम्न मन्त्र से अभिमन्त्रित करें। कौपीन को अभिमन्त्रित करने का मन्त्र यह है “ॐ अहँ आत्मन् देहिन् मतिज्ञानावरणेन, श्रुतज्ञानावरणेन, अवधिज्ञानावरणेन, मनः पर्यायावरणेन, केवलज्ञानावरणेन, इन्द्रियावरणेन, चित्तावरणेन आवृतोऽसि। तन्मुच्यतां तवावरणम् अनेनाऽऽवरणेन अर्ह ॐाँ" फिर उपनयन योग्य पुरुष को कटि मेखला के नीचे कौपीन पहिनाए। जिनोपवीत धारण- उसके बाद जिसका उपनयन इच्छुक 'नमोऽस्तुनमोऽस्तु' बोलते हुए गुरु के चरणों में झुके। • फिर पूर्ववत तीन-तीन प्रदक्षिणा देकर चारों दिशा में जिनबिम्ब के सम्मुख णमुत्थुणसूत्र बोले। • उसके बाद शुभ लग्न के आने पर गुरु पूर्वोक्त जिनोपवीत को अपने हाथ में ग्रहण करे, तब शिष्य मन्त्र पूर्वक यज्ञोपवीत पहनाने का निवेदन करे। निवेदन मन्त्र इस प्रकार है 'भगवन्! वर्णोज्झितोऽस्मि, ज्ञानोज्झितोऽस्मि, क्रियोज्झितोऽस्मि, तज्जिनोपवीतदानेन मां वर्ण-ज्ञान क्रियासु समारोपयेऽस्मि।” । • पुन: गुरु चरणों में गिरे। 'ॐ अहँ देहिन्!' इत्यादि पूर्वोक्त मन्त्र पूर्वक गुरु उसे खड़ा करें। • उसके बाद अपने दाएं हाथ में जिनोपवीत रखकर मन्त्र से अभिमन्त्रित करें। यज्ञोपवीत अभिमन्त्रण मन्त्र यह है ब्राह्मण मन्त्र- “ॐ अहँ नवब्रह्मगुप्ती: स्वकरण- कारणाऽनुमतीर्धारयः, तदनन्तरमक्षच्यमस्तु ते व्रतम्, स्व-परतरण- तारणसमर्थो भव अर्ह ॐा" क्षत्रिय मन्त्र- “ॐ अहँ नवब्रह्मगुप्तीः स्वकरण-कारणाभ्यां धारये:, तदनन्तरमक्षय्यमस्तु ते व्रतम्, स्वस्य तरणसमर्थों भव अर्ह ाँ” - वैश्य मन्त्र- 'ॐ अर्ह नवब्रह्मगुप्तीः स्वकरणेन धारये:, तदनन्तरमक्षय्यमस्तु ते व्रतम्, स्वस्य तरणसमर्थो भव अहँ ऊँ।" उल्लेख्य है कि वर्ण एवं योग्यता की अपेक्षा से ब्राह्मण, क्षत्रिय एवं वैश्य के लिए जिनोपवीत को अभिमन्त्रित करने के भिन्न-भिन्न मन्त्र कहे गए हैं। साथ ही उपनयन संस्कार जिस वर्ण के व्यक्ति का हो, उसके वर्णानुसार उपवीत को मन्त्रित कर उसके कंठ में पहनाएं।
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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