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उपनयन संस्कार विधि का आध्यात्मिक स्वरूप... 205
• फिर उपनयन योग्य पुरुष को आयंबिल का प्रत्याख्यान कराएं। हृदय-कटि - ललाट पर रेखा - तत्पश्चात गुरु उपनयन योग्य पुरुष को अपनी बाईं ओर बिठाकर अमृत मंत्र से अभिमन्त्रित सर्व तीर्थों के जल द्वारा अभिसिंचित करें। • फिर नमस्कारमंत्र पढ़कर उस पुरुष को प्रतिमा के आगे पूर्वाभिमुख बिठाएं। • गृहस्थ गुरु चंदन को अभिमन्त्रित करें। उसके बाद उस चंदन के द्वारा उपनयन इच्छुक पुरुष के हृदय पर यज्ञोपवीत रूप, कटि में मेखला रूप (कंदोरा रूप) और ललाट पर तिलक रूप रेखा अंकित करे। • उसके बाद वह पुरुष ‘नमोऽस्तु नमोऽस्तु' कहते हुए गुरु के चरणों में झुके और पुनः खड़े होकर कहे“भगवन्!
वर्णरहितोऽस्मि,
आचाररहितोऽस्मि, मन्त्ररहितोऽस्मि, गुणरहितोऽस्मि, धर्मरहितोऽस्मि, शौचरहितोऽस्मि, ब्रह्मरहितोऽस्मि, देवर्षिपितृतिथिकर्मसु नियोजय माम्ऽ”
मेखला बंधन- उसके बाद पुनः 'नमोस्तु- नमोस्तु' कहते हुए गृहस्थ गुरु के चरणों में गिरे, तब गुरु मंत्रोच्चार पूर्वक चोटी से पकड़कर उसे खड़ा करे । उसके बाद प्रतिमा के आगे पूर्व दिशा के सम्मुख खड़ा करे। • तदनन्तर मूंज की मेखला को अपने दोनों हाथों में रखकर निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए उसे अभिमन्त्रित करे। • मेखला (कंदोरा ) को अभिमन्त्रित करने का यह मन्त्र है -
“ॐ अर्हं आत्मन्! देहिन् ! ज्ञानावरणेन बद्धोऽसि, दर्शनावरणेन बद्धोऽसि, वेदनीयेन बद्धोऽसि, मोहनीयेन बद्धोऽसि, आयुषा बद्धोऽसि, नाम्ना बद्धोऽसि, गोत्रेण बद्धोऽसि, अन्तरायेण बद्धोऽसि, कर्मोष्टक प्रकृतिस्थितिरसप्रदेशैर्बद्धोसि तन्मोचयति त्वां भगवतोर्हतः प्रवचन चेतना तद् बुध्यस्व मामुहः, मुच्यतां तव कर्मबन्धनमनेन मेखला बन्धेन अर्ह ॐ”
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उसके बाद गृहस्थ गुरु उपनयन संस्कारी की कटि में नौगुनी मेखला को बांधे। यहाँ ज्ञातव्य है कि ब्राह्मण के लिए इक्यासी हाथ की, क्षत्रिय के लिए चौपन हाथ की और वैश्य के लिए सत्ताईस हाथ की मेखला का विधान है। ब्राह्मण को नौगुनी, क्षत्रिय को छः गुनी और वैश्य को तीनगुनी मेखला बांधनी चाहिए।
कौपीन ग्रहण - श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार मेखला (मौंजी), कौपीन एवं जिनोपवीत के पूजन, गीत आदि और रात्रि जागरण-ये सब पूर्व दिन की