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204...जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन
• सर्वप्रथम अपनी सामर्थ्य के अनुसार उपनयन योग्य पुरुष को सात, पाँच या तीन दिन तेल का मर्दन करवाकर स्नान कराएं। • उसके बाद गृहस्थ गुरु लग्न दिन में उसके घर आकर ब्रह्ममुहूर्त में पुष्टिकर्म करें। • फिर उपनयन योग्य पुरुष के सिर पर शिखा को छोड़कर शेष बालों का मुंडन कराएं। • उसके बाद योग्य भूमि पर वेदी स्थापना करें। उसे मध्य में चौकोर रखें। फिर वेदी की प्रतिष्ठा करें। . उसके ऊपर चौमुखजी की प्रतिमा स्थापित कर उसकी पूजा करें। • तदनन्तर उपनयन योग्य पुरुष वेदी (समवसरण) की तीन प्रदक्षिणा करें। • उसके बाद पश्चिम दिशाभिमुख जिनबिंब के सामने बैठकर गुरु एवं उपनयन संस्कारी शक्रस्तव बोलें। इसी तरह तीन-तीन प्रदक्षिणा देकर क्रमश: उत्तर, पूर्व और दक्षिण दिशा के सम्मुख रहे हुए जिनबिम्ब के आगे भी शक्रस्तव बोलकर चैत्यवन्दन करें। . उस समय मंगलगीत और वादिंत्र आदि का वादन होते रहना चाहिए। नगर में यदि आचार्य, उपाध्याय, साधु आदि विराजमान हों, तो उन्हें भी आमंत्रित करें।
• तदनन्तर उपनयन संस्कार प्रारंभ करने के लिए गृहस्थ गुरु वेद मन्त्र (जैन मंत्र) का उच्चारण करे तथा जिसका उपनयन संस्कार किया जा रहा है, वह बालक या पुरुष हाथ में दूर्वा और फल लेकर जिनप्रतिमा के आगे खड़े रहें एवं मन्त्र को सुने। ___“ॐ अर्ह, अर्हद्भ्यो नमः, सिद्धेभ्यो नमः, आचार्येभ्यो नम:, उपाध्यायेभ्यो नमः, साधुभ्यो नमः, ज्ञानाय नमः, दर्शनाय नमः, चारित्राय नम:, संयमाय नमः, सत्याय नमः, शौचाय नमः, ब्रह्मचर्याय नमः, आकिंचन्याय नमः, तपसे नमः, शमाय नमः, मार्दवाय नमः, आर्जवाय नमः, मुक्तये नमः, धर्माय नमः, संधाय नमः, सैद्धान्तिकेभ्यो नमः, धर्मोपदेशकेभ्यो नम:, वादिलब्धिभ्यो नमः, अष्टांगनिमित्त्क्षेभ्यो नमः, तपस्विभ्यो नमः, विद्याधरेभ्यो नमः, इहलोकसिद्धेभ्यो नमः, कविभ्यो नमः, लब्धिमदूभ्यो नमः, ब्रह्मचारिभ्यो नमः, निष्परिग्रहेभ्यो नमः, दयालुभ्यो नमः, सत्यवादिभ्यो नमः, नि:स्पृहेभ्यो नमः, एतेभ्यो नमस्कृत्याऽयं प्राणी प्राप्तमनुष्यजन्मा प्रविशति वर्णक्रमम् अर्ह
ॐाँ" ___• उसके बाद पुन: पूर्ववत चौमुख प्रतिमा की तीन प्रदक्षिणा करके गृहस्थ गुरु एवं उपनयन योग्य पुरुष दोनों ही चारों दिशाओं में णमुत्थुणं सूत्र बोलें।