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________________ उपनयन संस्कार विधि का आध्यात्मिक स्वरूप ...203 चौबीसवें वर्ष तक भी उपनयन किया जा सकता है। कुछ स्मृतियों ने कम अवस्था में भी उपनयन करना स्वीकार किया है। याज्ञवल्क्य ने इस सम्बन्ध में कुल धर्म को प्रमुख माना है। इस तरह इस संस्कार को सम्पन्न करने हेतु विभिन्न काल माने गए हैं, परन्तु उनमें सबसे पहला मत अधिक प्रासंगिक है, क्योंकि वह मत तीनों परम्पराओं को मान्य है। उपनयन संस्कार में प्रयुक्त आवश्यक सामग्री उपनयन संस्कार के लिए निम्न सामग्री को परमावश्यक माना है। उसकी सूची इस प्रकार है पौष्टिककर्म के उपकरण, मौंजी(मेखला), कौपीन, वल्कल, उपवीत, सुवर्ण की अंगूठी, गौ, श्रीसंघ का एकत्रित होना, तीर्थ के जल, वस्त्र, चन्दन, दर्भ, पंचगव्य(गाय का दूध, दही, घृत, मूत्र, गोबर), बलिकर्म के योग्य वस्तुएँ, वेदी, चौकी-बाजोट, तीर्थंकर परमात्मा की चौमुखी प्रतिमा और पलाश वृक्ष का दंड।69 ___दिगम्बर साहित्य में इस संस्कार के लिए उपयोगी सामग्री का पृथक रूप से कोई उल्लेख नहीं है। वैदिक ग्रन्थों में उपनयन संस्कार के लिए निम्न सामग्री को अनिवार्य माना है। बारह रोली(कुंकुम), सात मौली, पच्चीस केसर, तीन पताशा अखंड चावल, बारह पुष्प, पुष्पमाला, तीन धूप, एक दीप, अखण्ड सात तांबूल, नौ यज्ञोपवीत, तीन प्रणीतापात्र, छ:कांस्यपात्र, एक छायापात्र, एक सुवर्ण, एक कुशा, एक सुवा, पाँच पूर्णपात्र, पाँच धोती, दो कौपीन, पाँच मृगचर्म, पलाशदण्ड, गुलरशाखा, एक मुंजी की मेखला, एक सुहालीया शेर, आठ पुरवा(मिट्टी के सकोरे), आठ लटिया, दो नारियल, एक पट्टी, एक चगेर, पाँच लाठी, एक गुथली, दो कसारू, घृत, तिल, दही, ग्यारह सुपारी, सात आमपल्लव आदि वृक्ष के पत्ते, एक अंजन, एक दर्पण, पाँच वसु, दस दुर्वा दोने, अबीर छ:श्वेत, बाह्मण भोजन-दक्षिणा, पच्चीस पंचरंग आदि। विविध परम्पराओं में चर्चित उपनयन संस्कार विधि श्वेताम्बर- श्वेताम्बर परम्परा में उपनयन संस्कार की निम्न विधि प्रतिपादित है?1
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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