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202...जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन त्रयोदशी, चतुर्दशी, पूर्णमासी एवं अमावस्या की तिथियाँ प्राय: त्याज्य मानी हैं। वारों में- बुध, बृहस्पति, शुक्र, नक्षत्रों में- हस्त, चित्रा, स्वाति, पुष्य, धनिष्ठा, अश्विनी, मृगशिरा, पुनर्वसु, श्रवण एवं रेवती श्रेष्ठ माने गए हैं। इनके सिवाय जब शुक्र सूर्य के अति निकट हो, सूर्य राशि के प्रथम अंश में हो, तब अनध्याय के दिनों में तथा गलग्रह में उपनयन करने का निषेध किया गया है।62 साधारणत: जिन मासों में सूर्य उत्तरायण में हो, वे मास उपनयन के लिए श्रेष्ठ बतलाए गए हैं।63 वैश्य बालकों के लिए दक्षिणायन मास भी विहित है। वैदिक ग्रन्थों में विभिन्न वर्गों के उपनयन के लिए विभिन्न ऋतुएँ निश्चित की गईं हैं जैसे कि ब्राह्मण का उपनयन बसन्त में, क्षत्रिय का ग्रीष्म में, वैश्य का शरदऋतु में तथा रथकार का उपनयन वर्षाऋतु में करना चाहिए।64 ये विभिन्न ऋतुएँ विभिन्न वर्गों के स्वभाव तथा व्यवसाय का प्रतीक हैं।
परवर्ती लेखकों ने विभिन्न मासों के साथ भिन्न-भिन्न गुणों का योग भी किया है। जैसे कि जिस बालक का उपनयन माघ-मास में किया जाता है, वह समृद्ध होता है, फाल्गुन में उपनीत करने पर बुद्धिमान, चैत्र में उपनीत होने पर वेदों में निष्णात, वैशाख में उपनयन करने से समस्त सुख-भोगों से सम्पन्न, ज्येष्ठ में प्राज्ञ व श्रेष्ठ और आषाढ़ में शत्रुओं पर महान् विजयी तथा विख्यात महापण्डित होता है।65 इन मासों में भी शुक्ल पक्ष को संस्कार के लिए प्रधान बताया गया है।इस प्रकार वैदिक ग्रन्थों में तिथि, वार या नक्षत्रादि की अपेक्षा सूर्य के उत्तरायण महीने उपनयन के लिए सर्वश्रेष्ठ कहे गए हैं। उपनयन संस्कार हेतु शास्त्र वर्णित काल
यह संस्कार कब किया जाना चाहिए? तथा किस आयु तक यह संस्कार किया जा सकता है? इत्यादि विषय में अध्ययन करते हैं तो यह विदित होता है कि श्वेताम्बर परम्परानुसार यह संस्कार (गर्भाधान या जन्म से लेकर) ब्राह्मणों को आठवें वर्ष में, क्षत्रियों को ग्यारहवें वर्ष में और वेश्यों को बारहवें वर्ष में करना चाहिए।66
दिगम्बर ग्रन्थों में उपनीति संस्कार का समय बालक के गर्भ से आठवाँ वर्ष माना गया है।67 वैदिक ग्रन्थों का साधारण नियम यह है कि ब्राह्मण का उपनयन गर्भाधान या जन्म से लेकर आठवें वर्ष में, क्षत्रिय का ग्यारहवें वर्ष में तथा वैश्य का बारहवें वर्ष में करना चाहिए।68 अपवाद स्वरूप सोलहवें, बाईसवें एवं