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________________ उपनयन संस्कार विधि का आध्यात्मिक स्वरूप ...201 उपनयन-संस्कार हेतु शुभ दिन आदि का विचार यह संस्कार किन शुभ दिनों एवं शुभ लग्न में किया जाना चाहिए? इस सम्बन्ध में आचारदिनकर अति महत्त्वपूर्ण सूचना देता है। इसमें उपनयन संस्कार के योग्य नक्षत्रों एवं ग्रहों को अपने योग्य स्थानों पर होने का उल्लेख किया है। आचारदिनकर के अनुसार इस संस्कार के लिए श्रवण, धनिष्ठा, हस्त, मृगशिरा, अश्विनी, रेवती, स्वाति, चित्रा और पुनर्वसु उत्तम नक्षत्र माने गए हैं। उसमें यह भी कहा गया है कि मेखला का बंधन (ब्रह्मचारी के कटिभाग पर मूंज जाति के घास का बनाया हुआ कंदोरा पहनाना) और उसका मोचन मृगशिरा, रेवती, श्रवण, धनिष्ठा, हस्त, स्वाति, चित्रा, पुष्य और आश्विनी-इन नक्षत्रों में करना चाहिए। यह संस्कार करते समय यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि वर्णाधिप बलवान् हो अथवा सभी वर्गों के गुरु, चन्द्र और सूर्य के योग बलवान हों। इन योगों में किया गया संस्कार हितकारी होता है। जिस दिन बृहस्पतिवार हो, बृहस्पति बलवान हो या केन्द्र में हो, तो वह दिन ब्राह्मणों के संस्कार के लिए श्रेष्ठ माना गया है। इस संस्कार के लिए कौनसा ग्रह किस स्थान पर होना चाहिए तथा उन ग्रहों का शुभ-अशुभ फल क्या होता है? इस सम्बन्ध में और भी विस्तृत चर्चा की गई है। इसी क्रम में आगे यह बताया है कि पूर्वोक्त उत्तम नक्षत्रों में, मंगलवार को छोड़कर अन्य वारों में, शुभ तिथि में, दिन शुद्धि से युक्त दिन में और शुभ लग्न में तथा विवाह संस्कार के लिए जो नक्षत्र, दिन और मास आदि त्याज्य हों, उनको छोडकर पंचम लग्न में यह संस्कार सम्पन्न करना चाहिए।60 ___ दिगम्बर परम्परा के अनुसार यह संस्कार रवि, सोम, बुध, गुरु, शुक्र-इन वारों में एवं हस्त, अश्विनी, पुनर्वसु, पुष्य, उत्तरात्रय, रोहिणी, आश्लेषा, स्वाति, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, मूल, रेवती, मृगशिरा, चित्रा, अनुराधा, आर्द्रा, पूर्वात्रय-इन नक्षत्रों में करना चाहिए। उनके मत में यह संस्कार सामूहिक रूप से रक्षाबन्धन के दिन भी किया जाता है।61 वैदिक परम्परा में इस संस्कार के लिए विभिन्न मासों, ऋतुओं एवं पक्षों को प्रमुखता दी गई है। वृद्धगार्ग्य ने माघ से लेकर छ: मास उपनयन के लिए उपयुक्त माने हैं। कुछ विद्वानों ने प्रतिपदा, चतुर्थी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी,
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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