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________________ 194... जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन • शिखा आदि लिंग के धारक और यज्ञोपवीत धारण करने वाले भगवान की पूजा करते हैं।49 • भरत महाराजा ने यज्ञोपवीत धारक को ही भगवान् की पूजा करने का उपदेश दिया है। · आदिपुराण में कहा गया है - यज्ञोपवीतधारी को ही जिनेश्वर परमात्मा की पूजा, मुनियों को दान, स्वाध्याय, वार्ता, संयम, तप आदि क करना चाहिए। यह गृहस्थों का कुल धर्म है | 50 • दानशासन महाग्रन्थ में निर्देश है कि भगवान् की पूजा करने वाला अपने को इन्द्र की स्थापना के लिए यज्ञोपवीत आदि धारण करे | 51 • यही बात वैदिक ग्रन्थों में कही गई है - जो यज्ञोपवीत धारण नहीं करता, उसका यज्ञ सफल नहीं होता। दैनिक क्रियाओं भोजन आदि में भी यज्ञोपवीत धारण करना आवश्यक है अन्यथा प्रायश्चित्त आता है। 52 • श्री ब्रह्मसूरि आचार्य ने बतलाया है कि भगवान की पूजा यज्ञोपवीत धारण करके ही करना चाहिए तथा इसी के साथ कमर में मौंजी बन्धन और कोपीन ये कटिलिंग हैं; यज्ञोपवीत वक्षस्थल का लिंग है, शिखा मस्तक का लिंग है, तिलक भाल का चिह्न है। इन चिह्नों को धारण करने वाला ही जिन पूजन का अधिकारी होता है | 53 • प्रतिष्ठासारोद्धार में उल्लेख है कि सम्यक्दर्शन, सम्यक्ज्ञान और सम्यक्चारित्र रूप मुक्ताफल समान तीन लड़ का स्वच्छ यज्ञोपवीत धारण करता हूँ और परमात्मा की पूजा का अधिकारी होता हूँ। 54 • यज्ञ दीक्षा विधान नामक ग्रन्थ में वर्णन है कि - सम्यक्दर्शन, सम्यक्ज्ञान, सम्यक्चारित्र रूप यज्ञोपवीत आदि को धारण कर जिन पूजन का पात्र होता हूँ। इसके सिवाय देवसेन विरचित भावसंग्रह, नेमिचन्द्राचार्य रचित प्रतिष्ठातिलक, आदिपुराण आदि ग्रन्थों में भी उक्त की सटीक पुष्टि की गई है। इस विवेचन से यह पूर्णत: सुनिश्चित होता है कि दान, पूजा आदि षट्कर्म करने के लिए यज्ञोपवीत धारण करना परमावश्यक है। इसके बिना पूजा आदि कृत्य सफल नहीं होते हैं ।
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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