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उपनयन संस्कार विधि का आध्यात्मिक स्वरूप ...195
यज्ञोपवीत धारण के परवर्ती नियम
जैन परम्परा के अनुसार जब बालक विधि-विधान पूर्वक यज्ञोपवीत को धारण कर ले, तदनन्तर उसे विद्याध्ययन करना चाहिए। उस समय बालक को उचित वेश एवं व्रत चर्या का पालन करते हुए यह अवधि पूर्ण करनी चाहिए। उसकी वेशभूषा इस प्रकार की होनी चाहिए1. कटिलिंग - कमर पर त्रिगुणित मौंजी (मूंज की रस्सी) का बन्धन हो, यह
रत्नत्रय का विशुद्ध अंग है और ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य लोगों का एक
चिह्न है। 2. अरूलिंग - घटने तक स्वच्छ धूली हुई सफेद धोती पहनी हुई हो, यह
धोती सूचित करती है कि श्री अरिहन्त परमात्मा का कुल पवित्र और
विशाल है। 3. उरोलिंग - विद्यार्थी के वक्षःस्थल पर सात सूत्रों का गुंथा हुआ यज्ञोपवीत
हो, यह यज्ञोपवीत सात परम स्थानों का सूचक है। उनके नाम ये हैं1. सज्जाति-परम स्थान 2. सद्गृहस्थ-परम स्थान 3. परिव्राज्य- परम स्थान 4. सुरेन्द्र-परमस्थान 5. साम्राज्य-परम स्थान 6. आर्हत- परम
स्थान और 7. निर्वाण-परम स्थान 4. शिरोलिंग - मस्तक पर केशों का मुण्डन किया हुआ हो, यह मन-वचन
काया की शुद्धता का सूचक है।55
संक्षेप में कहें तो यज्ञोपवीत धारण किए हुए विद्यार्थी को ब्रह्मचर्य पालन की अवधि तक उक्त चार प्रकार की वेशभूषा एवं चिह्न को धारण कर रहना चाहिए।
यज्ञोपवीत संस्कार विद्यार्थी के लिए निम्न व्रतों/नियमों का आचरण करना भी आवश्यक माना गया है• उपवीतधारी ब्रह्मचारी को वृक्ष(लकड़ी) का दातौन नहीं करना चाहिए, न
पान खाना चाहिए, न अंजन लगाना चाहिए और न हल्दी आदि लगाकर स्नान करना चाहिए। उसे प्रतिदिन केवल शरीर शुद्धि के लिए दिन में स्नान करना चाहिए। ब्रह्मचारी विद्यार्थी को पलंग-चारपाई आदि पर नहीं सोना चाहिए, न किसी दूसरे शरीर से अपना शरीर रगड़ना चाहिए। भूमि पर अकेले ही सोना चाहिए।56