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190...जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन उससे किसी भी मलिन पदार्थ या व्यक्ति का स्पर्श न हो जाए, इस सम्बन्ध में पूर्ण सावधानी रखनी चाहिए। उपवीत की पवित्रता सदैव बनी रहे, एतदर्थ अग्र लिखित सूचनाओं का ध्यान रखा जाना चाहिए• मूत्र करते समय उसके छींटे उपवीत पर न गिर जाएं और गुह्यलिंग से
यज्ञोपवीत का स्पर्श न हो जाए, इसलिए उस समय यज्ञोपवीत को दाहिने कान पर स्थापित करें। • मल-विसर्जन करते समय मस्तक से लपेटकर बॉएं कान पर स्थापित
करें। • वमन की स्थिति होने पर उसे गले में दो-तीन बार लपेट लें, ताकि
वमन(उल्टी) के छींटे उस पर न गिर पाएं। • मैथुन करते समय यज्ञोपवीत को मस्तक पर रखें। • पूजा और दान आदि कृत्य के समय सदैव लंबायमान् धारण करें। • क्षौरकर्म कराते समय वह नाई से स्पर्शित न हो जाए इसलिए उस समय
कन्धे से नीचे भाग में पीठ पर उतार लें।
यदि मल-मूत्र करते समय या मैथुन के समय उपवीत को निर्दिष्ट स्थान पर स्थापित न किया हो या अनभ्यास की वजह से उसकी पवित्रता का ध्यान न रखा हो तो नौ बार नमस्कार-मन्त्र का जाप करना चाहिए, इससे उसकी शुद्धि हो जाती है।41
श्रीरामशर्मा आचार्य ने यज्ञोपवीत की पवित्रता को बनाए रखने हेतु निम्न सूचनाएँ दी हैं12 - 1. मल-मूत्र त्यागते समय जनेऊ को कान पर चढ़ाएं। 2. यज्ञोपवीत की पूजा-प्रतिष्ठा के लिए प्रतिदिन गायत्री मन्त्र की एक माला
(108 बार) गिनें। 3. कण्ठ से बाहर निकाले बिना ही साबुन आदि से उसे धोएं। 4. एक भी लड़ टूट जाने पर नया यज्ञोपवीत धारण करें। 5. चाबी आदि कोई भी वस्तु उसमें न बाँधे।
उपर्युक्त वर्णन के आधार पर तुलनात्मक दृष्टि से विचार किया जाए, तो पाते हैं कि दिगम्बर एवं वैदिक-दोनों परम्पराओं में जिनोपवीत की पवित्रता को सुरक्षित बनाए रखने हेतु महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ दी गई हैं, जबकि श्वेताम्बर