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________________ उपनयन संस्कार विधि का आध्यात्मिक स्वरूप... 191 आचार्यों द्वारा इस प्रकार का कोई निर्देश नहीं दिया गया है। मल-मूत्र आदि के समय जनेऊ को कान पर रखना, सूतक आदि के समय नया धारण करना, टूट जाने पर नया ग्रहण करना इत्यादि सूचनाओं को दोनों परम्पराओं ने समान रूप से स्वीकारा है किन्तु नया धारण करने के विषय में दोनों की मान्यता भिन्नभिन्न हैं। दिगम्बर मान्यतानुसार प्रति एक वर्ष में श्रावण शुक्ल पूर्णिमा के दिन नवीन यज्ञोपवीत धारण करना चाहिए और वैदिक परम्परानुसार प्रति छः मास के अनन्तर नया उपवीत धारण कर लेना चाहिए। श्वेताम्बर आचार्यों ने इस सम्बन्ध में कोई सूचन नहीं दिया है। जिनोपवीतधारी के लिए आचरणीय कृत्य दिगम्बर मतानुसार उपवीत को इन नियमों या व्रतों का अवश्य पालन करना चाहिए 1. मद्य - माँस- मधु का परित्याग करना । 2. पाँच प्रकार के उदुम्बर फलों का सेवन नहीं करना । 3. प्रतिदिन जिनालय के दर्शन करना । 4. रात्रिभोजन का त्याग करना । 5. पानी छानकर पीना । 6. मिथ्यात्वी देवों को नमस्कार, पूजा, उनकी मान्यता (मानता) आदि नहीं करना। 7. मिथ्या शास्त्रों का श्रवण नहीं करना, मिथ्यात्वी गुरुओं को नमस्कार नहीं करना। 8. यथाशक्ति पाँच अणुव्रतों का पालन करना । 9. प्राणीमात्र के प्रति दयाभाव रखना। 43 10. देव, गुरु, धर्म के प्रति अविचल श्रद्धा रखना । 11. सम्यग्दृष्टि के गुणों में अनुराग रखना । 12. भोजन-शुद्धि और खाद्य पदार्थों की शुद्धि का पूरा ध्यान रखना । के हाथ का स्पर्श किया हुआ जल, घृत, तेल, आटा आदि खाद्यपदार्थों का सेवन नहीं करना । 13. शूद्र 14. विधवा विवाह, जाति-पांति लोप और विजातीय विवाह नहीं करना ।
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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