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उपनयन संस्कार विधि का आध्यात्मिक स्वरूप... 189
4. चन्द्र 5. पितृ 6. प्रजापति 7. वायु 8. सूर्य और 9. सब देवताओं का समूह। वेद मन्त्रों से अभिमन्त्रित एवं संस्कार पूर्वक निर्मित यज्ञोपवीत में नौ शक्तियों का निवास होता है। वह सूत्र (धागा) शरीर रूपी देवालय के लिए परम कल्याणकारी होता है।
सामवेदीय छान्दोग्यसूत्र में यज्ञोपवीत के सम्बन्ध में एक और महत्त्वपूर्ण उल्लेख यह है कि ब्रह्माजी ने तीन वेदों से तीन धागे का सूत्र बनाया । विष्णु ने ज्ञान, कर्म, उपासना-इन तीनों काण्डों से तिगुना किया और शिवजी ने गायत्री से अभिमन्त्रित कर उसमें ब्रह्म गाँठ लगा दी। इस प्रकार यज्ञोपवीत नौ तार और ग्रन्थियों समेत बनकर तैयार हुआ है।
यज्ञोपवीत के नौ धागे निम्नोक्त नौ गुणों के भी प्रतीक माने गए हैं1. अहिंसा 2. सत्य 3. अस्तेय 4. तितिक्षा 5. अपरिग्रह 6. संयम 7. आस्तिकता 8. शान्ति और 9. पवित्रता । इसके सिवाय अन्य भी नौ गुण बताए गए हैं, जो निम्न हैं- 1. हृदय में प्रेम 2. वाणी में मधुरता 3. व्यवहार में सरलता 4. नारीमात्र में मातृत्व की भावना 5. कर्म में कला 6. सबके प्रति उदारता और सेवा भावना 7. गुरुजनों का सम्मान 8. सद्ग्रन्थों का स्वाध्याय एवं सत्संग और 9. स्वच्छता, व्यवस्था और निरालस्यता का स्वभाव 40
इस प्रकार हम देखते हैं कि वैदिक धर्म में नौ धागे नौ देवताओं एवं नौ गुणों के प्रतीक हैं। साथ ही उपर्युक्त विवेचन से अवगत होता है कि तीनों परम्पराओं में नव तंतु गर्भित त्रिसूत्र को ही उपवीत के रूप में स्वीकारा गया है। यद्यपि इसके उद्देश्य और प्रतीक भिन्न रहे हैं। श्वेताम्बर एवं वैदिक परम्पराएँ यज्ञोपवीत की विस्तृत चर्चा करती हैं, जबकि दिगम्बर परम्परा में अपेक्षाकृत संक्षिप्त चर्चा ही मिलती है।
उपवीत धारण करने के कुछ विधि नियम
उपवीतधारी को सदैव यह स्मरण रखना चाहिए कि यज्ञोपवीत रत्नत्रय प्राप्ति का श्रेष्ठ आलम्बन है, परम पवित्र है, परमात्मा की आज्ञा स्वरूप है, सज्जाति की अभिव्यक्ति करने का मुख्य चिह्न स्वरूप है, व्रत रूप है, श्रावक धर्म का मूल प्रतीक है, धर्म का बीज है, विचार शुद्धि का अनन्य कारण है, मोक्षमार्ग की पात्रता का आदर्श है, दान-पूजा आदि सत्कर्म एवं सदाचार में प्रवृत्ति करने का मूल आधार है अतः यज्ञोपवीत एक प्रकार से देवतुल्य है,