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168... जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन
इस संस्कार के प्रारम्भ में सर्वप्रथम गणेश की पूजा, मंगल श्राद्ध आदि कृत्य सम्पन्न किए जाते हैं । उस दिन ब्राह्मण को भोजन करवाते हैं। माता शिशु को स्नान करवाती है तथा पूर्व में नहीं धोए गए वस्त्र द्वारा उसके शरीर को ढककर अपनी गोद में लेकर यज्ञीय अग्नि के पश्चिम की ओर बैठ जाती है। उस समय पिता पुत्र को पकड़ते हुए आज्य - आहुतियाँ देता है। फिर दही या घृत का कुछ भाग पानी के साथ मिलाकर शिशु के दाहिने कर्ण की ओर के केशों को निम्न शब्द बोलते हुए गीला करता है - 'सविता की प्रेरणा से दिव्य जल तेरी देह को शुद्ध करे, जिससे तू दीर्घायुष्य और तेज प्राप्त कर सके। फिर केशों को विकीर्ण कर कुश की तीन पत्तियों को रखता है और उस समय यह कहता है 'हे कुश! शिशु की रक्षा कर ! उसे पीड़ा न पहुँचा । '
तदनंतर 'तू नाम से शिव है, स्वधिति तेरा पिता है, तुझे मैं नमस्कार करता हूँ, तू इस शिशु की हिंसा न कर' - इस मन्त्र के उच्चारण के साथ लोहे का उस्तरा उठाता है और 'मैं आयुष्य, अनाद्य, प्रजनन, ऐश्वर्य, सुप्रजात्व तथा सुवीर्य के लिए केशों को काटता हूँ' - इस मन्त्र के साथ केशों का छेदन करता है। उसके बाद केशों के साथ ही कुश की पत्तियों का भी छेदन कर उन्हें बैल के गोबर के पिण्ड पर छोड़ देता है। सिर के पीछे के केशों को पिता 'तिगुनी आयु' आदि मन्त्र के साथ काटता है। उसके बाद- 'तू बलवान् हो, स्वर्ग को प्राप्त कर सके, दीर्घकाल तक सूर्य को देख सके, आयुष्य, सत्ता, दीप्ति एवं कल्याण के लिए मैं तेरा मुण्डन करता हूँ' - इस मन्त्र के उच्चारण के साथ बाईं ओर से केशों का छेदन करता है।
यदि सिर मुण्डन का कार्य नापित करता है, तब भी पिता द्वारा मन्त्र का उच्चारण और बाईं से दाहिनी ओर तक तीन बार केश काटने की क्रिया की जाती है।
उसके बाद निष्कासित केशों के साथ गोमय पिण्ड को गोशाला में गाढ़ दिया जाता है या किसी छोटे तालाब में फेंक दिया जाता है । अन्ततः आचार्य (ब्राह्मण) और नाई को दान दक्षिणा दी जाती है। 25
चूड़ाकरण सम्बन्धी विधि-विधानों के सांस्कृतिक प्रयोजन
चूड़ाकरण संस्कार सम्बन्धी क्रियाकलापों के कुछैक प्रयोजन निम्नोक्त हैंमस्तक लेपन - श्वेताम्बर परम्परा में मस्तक मुंडन होने के बाद बालक