SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 227
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चूड़ाकरण संस्कार विधि का उपयोगी स्वरूप ...169 के सिर पर चन्दन आदि का लेप करते हैं तथा वैदिक धर्म में शिशु के बालों का मुंडन करने से पूर्व गोरस, दूध, दही या घृत में जल मिलाकर भिगोते हैं। इस क्रिया को 'मस्तक लेपन' कहते हैं। श्रीराम शर्मा आचार्य के मतानुसार इस क्रिया विधि के दौरान बालक के लिए चन्दन की भाँति शीतल और गाय माता की भाँति परोपकारी एवं कल्याणकारी बनने की कामना की जाती है। गोरस में वे सभी गुण रहते हैं, जो गौ माता में विद्यमान है। इन द्रव्यों से मस्तक का लेपन करना, बालों का भिगोना इस बात का प्रतीक है कि हमारी विचारणा एवं मानसिक प्रवृत्ति एवं गोरस जैसी स्निग्ध सौम्य होनी चाहिए। गोरस द्वारा शिरस्थ रोमकूपों का भिगोया जाना, इस बात का सूचन करता है कि हम जो कुछ सोचेविचारें, उसके पीछे प्रेम भावना का समुचित पुट होना चाहिए। चूडाकर्म संस्कार में मस्तक लेपन क्रिया का एक कारण यह भी है कि इस बालक का मानसिक विकास रूखा, संकीर्ण व अनैतिक दिशा में न हो। जैसेगौ अपने बछड़े को प्यार करती है, बड़ा होने पर वह बालक भी उसी प्रकार अपने समस्त परिवार से स्नेह करें तथा सम्पूर्ण समाज के प्रति 'वसुधैव कुटुम्बकम्' की भावना रखे। मस्तक लेपन का एक प्रयोजन यह भी कहा जा सकता है कि उसमें सहृदयता, भावुकता, करूणा, मैत्री की आर्द्रता यावतजीवन बनी रहें।26 शिखाधारण- वैदिक परम्परा में बालों के गीले हो जाने पर सम्पूर्ण बालों को दाएं-बाएं तथा मध्य ऐसे तीन भागों में विभक्त करते हैं। उन्हें कुशाओं तथा कलावे से जूड़े की तरह बाँध देते हैं। इस तरह सिर पर तीन शिखाएँ बनती हैं। उस समय तीन मन्त्र बोले जाते हैं। ये तीनों शिखाएँ मन्त्र के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु एवं रूद्र की प्रतीक हैं। इन तीनों देवताओं का मस्तिष्क में आह्वान एवं स्थापन करने का प्रयोजन यह है कि मस्तिष्क में देवत्व के भाव भरे रहें, असुर प्रवृत्ति के लिए किसी प्रकार की गुंजाईश न रहे। हमारा जीवन इस प्रकार विकसित हो कि इन तीनों तत्त्वों के समुचित सदुपयोग की सम्भावनाएँ बढ़ती रहें। इन तीन शिखाओं के अन्य भी कईं प्रयोजन अनुभूत किए जो सकते हैं। जिस तरह तीन धागे वाला यज्ञोपवीत पहनाते हैं और तीन लड़ों के माध्यम से महत्त्वपूर्ण शिक्षा बटुक को देते हैं, उसी प्रकार इन तीन शिखाओं में भी तीन शिक्षाओं का समावेश है। माता, पिता, गुरु-इन तीनों के अनुशासन में रहना,
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy