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चूड़ाकरण संस्कार विधि का उपयोगी स्वरूप ...167 • जब मुंडन क्रिया पूर्ण हो जाए तदनन्तर तीर्थ जल द्वारा बालक को अभिसिंचित करे। उस समय गीत-वाद्य आदि का वादन होते रहने चाहिए। . उसके बाद पंचपरमेष्ठी का स्मरण करते हुए बालक को आसन से उठाएं और स्नान करवाएं। फिर उसके अंग पर चन्दन आदि का लेप करें, श्वेत वस्त्र पहनाएं। आभूषणों से भूषित करें। . तदनन्तर बालक को उपाश्रय में ले जाएं। वहाँ पूर्वोक्त विधि से मंडलीपूजा करें, गुरु को वन्दन करें तथा बालक के सिर पर वासचूर्ण प्रदान करवाएं। • उसके बाद साधुओं को शुद्ध वस्त्र, आहार आदि का दान करें। गृहस्थ गुरु को वस्त्र-स्वर्ण आदि प्रदान करें और नाई को वस्त्र एवं कंकण उपहार में दें।
दिगम्बर- दिगम्बर परम्परावर्ती आदिपुराण में चौलकर्म संस्कार की निम्न विधि कही गई है
किसी शुभ दिन में सर्वप्रथम शिशु के बालों को गन्धोदक से गीला करें। फिर उन पर पूजा के बचे हुए शेष अक्षत रखें। उसके बाद चोटी सहित या अपनी कुल-पद्धति के अनुसार उसका मुण्डन करें। तदनन्तर बालक को स्नान करवाएं, चन्दन आदि का लेप लगाएं, उत्तम आभूषण पहनाएं, फिर नगरस्थ मुनि भगवन्त के दर्शन हेतु लेकर जाएं। उसके बाद सभी सम्बन्धीजन बालक को आशीर्वाद प्रदान करें।22 इसके साथ ही केश निकल जाने के बाद चोटी के स्थान पर केशर द्वारा स्वस्तिक बनाएं।23 इस परम्परा में मुंडन करते समय, आशीर्वाद के रूप में मंत्र का उच्चारण करते हुए द्विज विधि पूर्वक चोटी रखता है। वह मन्त्र पाठ इस प्रकार है24__“उपनयनमुण्डभागीभव, निर्ग्रन्थमुण्डभागीभव, निष्क्रान्तिमुण्ड- भागीभव, परमनिस्तारककेशभागीभव, परमेन्द्रकेशभागी-भव, परम- राज्य-केशभागीभव, आर्हन्त्यराज्यकेशभागीभव।"
वर्षवर्द्धन संस्कार- दिगम्बर परम्परा में ग्यारहवाँ संस्कार वर्षवर्द्धन नाम का माना गया है। बालक का एक वर्ष पूर्ण होने पर आयु वृद्धि के उद्देश्य से यह संस्कार किया जाता है। इस संस्कार में दान देना, अर्हत्प्रतिमा की पूजा करना, इष्ट बन्धुओं को आमन्त्रित करना और सर्व आगन्तुकों को भोजन कराना आदि कृत्य पूर्ववत् सम्पन्न किए जाते हैं।
वैदिक- वैदिक ग्रन्थों में चौलकर्म संस्कार की अग्रलिखित विधि उल्लिखित है