________________
166...जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन पौछने का वस्त्रखण्ड, नए वस्त्र की जोड़ी, आभूषण, जिनस्नात्र पूजा की सामग्री, कुलोचित नैवेद्यादि पकवान, चन्दन का लेप आदि।
वैदिक परम्परानुसार इस संस्कार के लिए निम्नलिखित सामग्रियों की आवश्यकता होती है- (1) अग्नि के उत्तर दिशा की ओर रखने योग्य चावल, जौ, उड़द एवं तिल के चार पात्र (2) अग्नि के पश्चिम दिशा की तरफ रखने हेतु दो बरतन, जिनमें से एक में बैल का गोबर तथा दूसरे में शमी की पत्तियाँ भरी रहती हैं (3) कुश के इक्कीस गच्छों को पकड़े रहने वाला पुरोहित (4) गर्म या शीतल जल (5) छुरा या उदुम्बर लकड़ी का बना छुरा (6) एक दर्पण और (7) नाई- ये चीजें अनिवार्य मानी गईं हैं।21
दिगम्बर परम्परा में इस तरह की सामग्री का कोई वर्णन नहीं है। चूड़ाकरण संस्कार विधि शास्त्रों के आलोक में
श्वेताम्बर- आचारदिनकर में आचार्य वर्धमानसूरि ने चूड़ाकरण संस्कार की विधि इस प्रकार प्रवेदित की है
• जिस मास में बालक का सूर्य बलवान् हो, उस महिने में और जिस दिन चन्द्र बलवान् हो, उन शुभ तिथियों, वारों एवं नक्षत्रों के होने पर यह संस्कार करें। . उसमें सर्वप्रथम अपनी कुल विधि के अनुसार कुल देवता की प्रतिमा के आगे या अन्य गाँव, वन, पर्वत या गृह पर शास्त्रोक्त-विधि अनुसार पौष्टिक विधान करें। . उसके बाद षष्ठी माता को छोड़कर शेष आठ माताओं की पूर्ववत पूजा करें। फिर कुल परम्परा के अनुरूप कुल देवता के लिए पकवान आदि निर्मित करवाएं। • तत्पश्चात शारीरिक शुद्धि से युत गृहस्थ गुरु बालक को आसन (चौकी) पर बिठाएं। . फिर विधि पूर्वक बृहत्स्नात्र के न्हवण जल को शान्तिदेवी के मन्त्र से मन्त्रित करे। • उसके बाद कुल परम्परागत नाई के हाथ से बालक का मुंडन करवाए। यदि बालक ब्राह्मण, क्षत्रिय या वैश्य हो, तो उसके मस्तक के मध्यभाग में शिखा का स्थापन करे और शूद्र बालक हो, तो उसका पूर्ण मुंडन करे।
• श्वेताम्बर परम्परानुसार चूड़ाकरण के समय निम्न मंत्र का सात बार स्मरण किया जाता है____ “ॐ अहँ ध्रुवमायुधुवमारोग्यं, ध्रुवा:श्रीयो, ध्रुवं कुलं, ध्रुवं यक्षो, ध्रुवं तेजो, ध्रुवं कर्म, ध्रुवा च गुण संततिरस्तु अहँ ऊँ।"