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130... जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन
में उन्हें भर दें। कागज के एक टुकड़े पर 'नाम' ऐसा शब्द लिखकर उसकी गोली बनाएं। इसी प्रकार एक हजार सात कोरे टुकड़ों की गोलियाँ बनाकर इन सबको एक दूसरे घड़े में भर दें । तदनन्तर किसी अन्य बालक द्वारा दोनों घड़ों में से एक-एक गोली निकलवाते जाएं। जब किसी नाम चिह्नित गोली के साथ 'नाम' ऐसा लिखी हुई गोली निकले, तब वही नाम बालक का रखना चाहिए | 20 यह घट पत्र विधि है। कोई सुयोग्य नाम अथवा घट पत्र की विधि पूर्वक प्राप्त हुआ नाम रखना ही नामकरण संस्कार है।
वैदिक - वैदिक परम्परा में गृह्यसूत्रों के आधार पर नामकरण संस्कार के दिन निम्न विधि की जाती है - उस दिन घर को प्रक्षालित कर शुद्ध करते हैं। शिशु और माता को स्नान करवाया जाता है। उसके बाद माता शिशु को शुद्ध वस्त्र से ढँककर तथा उसके सिर को गीला कर पिता को हस्तान्तरित करती है। उसके बाद प्रजापति, अग्नि, सोम आदि को आहुतियाँ दी जाती हैं। पिता शिशु के श्वास-प्रश्वासों का स्पर्श करता है, जिसका उद्देश्य संभवतः शिशु का ध्यान संस्कार की ओर आकृष्ट करना है। उसके बाद नाम रखा जाता है। परवर्ती ग्रन्थों में नामकरण की निम्नलिखित विधि प्राप्त होती है - पिता शिशु के दाहिने कान की ओर झुकता हुआ इस प्रकार सम्बोधित करता है - 'हे शिशु, तु कुलदेवता का भक्त है, तेरा नाम है, तू इस नक्षत्र में जन्मा है, अतः तेरा नाम है तथा तेरा लौकिक नाम है।' वहाँ पर एकत्रित हुए ब्राह्मण कहते हैं'यह नाम प्रतिष्ठित हो।' फिर पिता औपचारिक रूप से शिशु द्वारा ब्राह्मणों को अभिवादन करवाता है, फिर वही अभिवादनीय नाम रखा जाता है। ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है तथा देवताओं और पितरों को आदर पूर्वक अपने-अपने स्थान की ओर संप्रेषित करते हैं। 21 यहीं पर नाम संस्कार समाप्त हो जाता है। तुलनात्मक दृष्टि से नामकरण संस्कार के विविध पक्ष
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यदि हम तुलनात्मक दृष्टि से नामकरण संस्कार विधि का विवेचन करें, तो श्वेताम्बर, दिगम्बर एवं वैदिक - तीनों परम्पराओं में इस संस्कार की विविध विशिष्टताएँ दृष्टिगत होती हैं। वह निम्नानुसार हैं
• श्वेताम्बर, दिगम्बर एवं वैदिक- इन तीनों परम्पराओं में इस संस्कार के नाम को लेकर समानता है, किन्तु संस्कार क्रम की अपेक्षा भिन्नता है ।