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________________ नामकरण संस्कार विधि का प्रचलित स्वरूप... 131 • श्वेताम्बर परम्परा में नामकरण संस्कार का क्रम आठवाँ, दिगम्बर परम्परा में सातवाँ एवं वैदिक परम्परा में पाँचवा क्रम है। • श्वेताम्बर आम्नाय में जैन ब्राह्मण, दिगम्बर में जैन द्विज एवं वैदिक मत में शिशु का पिता एवं ब्राह्मण इस संस्कार के अधिकारी बतलाए गए हैं अतः तीनों परम्पराओं में अधिकारी सम्बन्धी प्रायः समानता है। • श्वेताम्बर परम्परा के प्राचीन ग्रन्थों में इस संस्कार का काल बारहवाँ दिन तथा अर्वाचीन ग्रन्थों में बारहवाँ, सोलहवाँ आदि दिनों के विकल्प बताए गए हैं। दिगम्बर परम्परा में जन्म से बारहवें दिन या उसके बाद किसी शुभ दिन यह संस्कार करने का उल्लेख है। वैदिक मत में दसवें दिन से लेकर एक वर्ष की अवधि तक कोई भी काल इस संस्कार के लिए उपयुक्त माना गया है। इस प्रकार बारहवें दिन की अपेक्षा तुलना कर देखें तो तीनों परम्पराओं में संस्कार काल को लेकर समानता ही प्रतीत होती है, विकल्प की दृष्टि से भेद भी हैं। श्वेताम्बर परम्परा में वासचूर्ण को अभिमन्त्रित करने हेतु ‘वर्धमानविद्यामन्त्र' के स्मरण का उल्लेख है, किन्तु दिगम्बर एवं वैदिक परम्परा में इस संस्कार को लेकर किसी मन्त्र का निर्देश नहीं हुआ है। · • श्वेताम्बर एवं दिगम्बर- इन दोनों परम्पराओं में इस संस्कार को सम्पन्न करने के लिए जिनप्रतिमा का दर्शन-पूजन एवं गुरु का दर्शन-वंदन आवश्यक माना गया है। साथ ही ज्योतिषी एवं विधिकारक गुरु का यथायोग्य सत्कार करना भी जरूरी बतलाया है। यह बात दोनों में समान है, किन्तु आचारदिनकर में ज्योतिषी द्वारा लग्नकुंडली बनवाना, लग्न कुंडली की बहुमूल्य द्रव्य द्वारा पूजा करना, उपाश्रय में मंडलीपट्ट की पूजा करना, गृहस्थ गुरु द्वारा कुल वृद्धा के कान में बालक का नाम कहना, जिनप्रतिमा एवं गुरु के समक्ष नूतन नाम का उच्चारण करना आदि विधियाँ विशेष है तथा आदिपुराण (दिगम्बर) में घटीपात्र की विधि अतिरिक्त कही गई है, अतः इन दोनों परम्पराओं में नामकरण संस्कार विधि को लेकर कुछ समानता तो कुछ असमानताएँ हैं। वैदिक परम्परा में मान्य संस्कार विधि जैन परम्परा से सर्वथा भिन्न है। उपसंहार चराचर जगत नाम रूपात्मक है । जगत की कोई भी वस्तु नाम और रूप की परिधि से परे नहीं है। रूप चक्षु ग्राह्य होता है और नाम श्रुति संवेद्य । रूप के
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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