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128...जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन तथा बच्चे को पालने में झुलाती हैं। कहीं-कहीं अब भी यह संस्कार विधिवत किया जाता है, किन्तु अब इसका प्रचलन एक प्रकार से समाप्त-सा हो गया है। ____ यदि हम जैनागमों पर दृष्टिपात करते हैं तो उनमें ज्ञाताधर्मकथा,
औपपातिक, राजप्रश्नीय, कल्पसूत्र आदि में जन्म से बारहवें दिन यह संस्कार किए जाने का निर्देश प्राप्त होता है।17 नामकरण संस्कार में उपयोगी आवश्यक सामग्री __श्वेताम्बर परम्परा में नामकरण संस्कार हेतु कुछ सामग्री अनिवार्य कही गई है। सामग्री सूची यह है- 1. विविध प्रकार के सुरीले वादिंत्र 2. मांगलिक गीत-गान करने वाली नारियां 3. ज्योतिषी 4. संस्कार करवाने वाला गृहस्थ गुरु 5. प्रचुर मात्रा में फल 6. स्वर्ण और रजत की मुद्राएँ 7. विभिन्न प्रकार के वस्त्र 8. वासचूर्ण 9. चंदन 10. दूर्वा 11. नारियल 12. जिन-प्रतिमा की पूजासामग्री और 13. मुद्राएँ।18
दिगम्बर एवं वैदिक परम्परा के ग्रन्थों में इस संस्कार के लिए अपेक्षित सामग्री का उल्लेख हुआ हो ऐसा देखने में नहीं आया है। नामकरण संस्कार विधि का शास्त्रीय स्वरूप
श्वेताम्बर- आचार दिनकर में नामकरण संस्कार की विधि इस प्रकार कही गई है 19 -
जिस दिन यह संस्कार सम्पन्न करना हो उस दिन सर्वप्रथम ज्योतिषी सहित गृहस्थ गुरु नवजात बालक के घर में शुभ आसन एवं शुभ स्थान पर नमस्कार मन्त्र का स्मरण करते हुए बैठे रहें। . उस समय बालक के पिता, पितामह आदि करयुगल में पुष्प-फल लेकर ज्योतिषी सहित गुरु को साष्टांग प्रणाम करके कहें- 'हे भगवन् ! पुत्र का नामकरण कीजिए।' तब गुरु उस बालक के कुल पुरुषों (पिता-दादा आदि) और कुल स्त्रियों को आगे बिठाकर ज्योतिषाचार्य को जन्म लग्न कहने का आदेश करें। तब ज्योतिषी शुभ पट्ट पर खड़िया मिट्टी से बालक के लग्न को लिखे और यथास्थान ग्रहों को स्थापित करें। • उसके बाद पिता-पितामह आदि जन्म लग्न की पूजा करें। इस पूजा में 12 स्वर्णमुद्रा, 12 रौप्यमुद्रा, 12 ताम्रमुद्रा, 12 सुपारी, 12 अन्य फल, 12 नारियल और 12 नागरवेल के पान- इस प्रकार 12-12 वस्तुओं द्वारा बारह लग्न की पूजा करें। फिर इसी प्रकार इन्हीं 9-9 द्रव्यों से नवग्रह की पूजा करें)